दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को भारतीय सेना के एक मेजर द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि उनकी पत्नी का किसी अन्य मेजर के साथ संबंध है। इस याचिका में महिला के निजता के अधिकार का हवाला दिया गया था। पटियाला हाउस कोर्ट के सिविल जज वैभव प्रताप सिंह ने कहा कि मुझे लगता है कि निजता का अधिकार और होटल में अकेले रहने का अधिकार आम क्षेत्रों तक विस्तारित होगा, जबकि तीसरा पक्ष जो वहां मौजूद नहीं था और उसके पास अतिथि का डेटा मांगने का कोई अन्य कानूनी रूप से उचित अधिकार नहीं है। बुकिंग विवरण के लिए भी यही बात लागू होगी।
जानें कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट ने कहा, “महिला को कोई भूमिका या जिम्मेदारी दिए बिना किसी पुरुष द्वारा दूसरे पुरुष की पत्नी को चुराने का पुराना विचार खारिज किया जाना चाहिए। यह महिलाओं से अधिकार छीन लेता है और उन्हें अमानवीय बनाता है। यहां तक कि भारतीय संसद ने भी इस न्यायशास्त्र को अपनी स्वीकृति दी है, जब उसने औपनिवेशिक दंड कानून को खत्म करते हुए भारतीय न्याय संहिता को अधिनियमित किया और उसमें व्यभिचार के अपराध को बरकरार नहीं रखा। इससे पता चलता है कि आधुनिक भारत में पितृसत्तात्मक धारणाओं के लिए कोई जगह नहीं है।”
मेजर ने अदालत से होटल को 25 और 26 जनवरी के लिए बुकिंग विवरण और सामान्य क्षेत्रों के सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने के निर्देश मांगे थे। उनका मानना है कि उनकी पत्नी (जिसके साथ उनका वैवाहिक विवाद और तलाक की कार्यवाही चल रही है) और एक मेजर आए थे।
होटल ने दिया जवाब
वहीं होटल ने कहा कि उसने केवल 90 दिनों के लिए सीसीटीवी फुटेज को सहेजा है और जो फुटेज मांगी जा रही है वह उपलब्ध नहीं है। इस पर, मेजर ने यह कहते हुए जवाब दिया कि उन्हें दिल्ली पुलिस के एक विश्वसनीय सोर्स से पता चला है कि वीडियो अभी भी उपलब्ध हैं और इंडस्ट्री एक्सरसाइज के अनुसार किसी डिपोजिटरी में रखे गए हैं। जज ने कहा कि होटलों को अपने मेहमानों के प्रति गोपनीयता बनाए रखने का कर्तव्य है और उन्हें अपने बुकिंग विवरण और सीसीटीवी फुटेज की गोपनीयता की रक्षा करनी चाहिए।
जज ने कहा, “अदालतें निजी विवादों के लिए जांच निकाय या आंतरिक कार्यवाही में साक्ष्य इकट्ठा करने के साधन के रूप में काम करने के लिए नहीं हैं। मेजर की शिकायत नैतिक है, कानूनी नहीं। यह अदालत उनके साथ सहानुभूति रख सकती है, लेकिन कानून द्वारा अनुमति न दिए जाने पर निषेधाज्ञा देने का यह कोई कारण नहीं है। हालांकि उनके पास कोई कारण हो सकता है, लेकिन निश्चित रूप से उनके पास कोई मामला नहीं है।”