भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारा 15 अगस्त को जरूर हो गया लेकिन इसका दर्द कई सालों तक बना रहा। भारत के बंटवारा के दौरान लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। बंटवारे का दर्द करोड़ों भारतीयों ने झेला। आज भी बहुत से लोग उस दर्दनाक मंजर को याद करके सिहर जाते हैं। इस विभाजन के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच सिर्फ जमीन के ही दो टुकड़े नहीं हुए बल्कि कॉपी-किताब, मेज-कुर्सी, बंदूकें, रायफल सब कुछ बटा। पाकिस्तान की हिमाकत करने वाले मोहम्मद अली जिन्ना सब कुछ नए मुल्क लेकर जाना चाहते थे।

भारत और पाकिस्तान के बीच जमीन का बंटवारा जरूर रेडक्लिफ ने किया हो, लेकिन अन्य सभी सामानों का बंटवारा दोनों देशों की रजामंदी से किया जा रहा था। बंटवारे को उस समय के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन की देखरेख में किया जा रहा था। क्योंकि उन्हें ही इस काम की जिम्मेदारी मिली थी। इसी दौरान भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और जिन्ना एक किताब को लेकर अड़ गए।

विभाजन परिषद का किया गया था गठन

दरअसल भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद माउंटबेटन की अध्यक्षता में एक विभाजन परिषद का गठन किया गया था। इस परिषद के तहत दोनों देशों के बीच रक्षा, सार्वजनिक वित्त, मुद्रा समेत सभी मामलों को दो हिस्सों में बांटा जा रहा था। बंटवारे के दौरान दोनों देशों के बीच कई छोटे-बड़े सामानों के लिए खूब झगड़े भी हुए। कई बार स्थिति ऐसी भी आई जब सिक्का उछाल कर सामानों का बंटवारा हुआ।

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इसी बीच एक किताब को लेकर नेहरू और जिन्ना दोनों अड़ गए। ‘एनसायक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका’ नाम की एक किताब को दोनों देश अपने पास रखना चाहते थे। जब इस झगड़े का कोई निदान नहीं निकला तो अंतत: इस किताब को दो भाग में बांट दिया गया। इसके बारे में विजय लक्ष्मी बालाकृष्णनन ने अपनी किताब ‘Growing Up and Away: Narratives of Indian Childhoods: Memory, History, Identity’ में लिखा है कि एनसायक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका को दो हिस्से कर दिए गए। इस किताब के साथ-साथ उस समय लाइब्रेरी में मौजूद डिक्शनरी को भी दो हिस्से कर दिया गया। A से लेकर K तक भारत के हिस्से मिला जबकि बाकी बचा हिस्सा पाकिस्तान को दे दिया गया।

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