पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है। दोनों देशों ने बॉर्डर के पास सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी हैं। केंद्र सरकार ने कई राज्यों से मॉक ड्रिल करने के लिए कहा है। गृह मंत्रालय ने राज्यों को 7 मई को सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल करने के लिए कहा है। सभी राज्यों को हवाई हमलों से बचने के लिए मॉक ड्रिल का निर्देश दिया है। इस बीच मंगलवार को जम्मू विश्वविद्यालय में बोलते हुए , जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि जनरल जोरावर सिंह, ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह और मकबूल शेरवानी जैसे स्थानीय नायकों के जीवन संघर्ष को जल्द ही राज्य के स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। आइए जानते हैं कौन हैं मकबूल शेरवानी और जम्मू-कश्मीर के इतिहास में उनकी क्या भूमिका है?
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य मकबूल शेरवानी ने 19 साल की उम्र में अक्टूबर 1947 में श्रीनगर की ओर बढ़ रहे पाकिस्तान समर्थित कबायलियों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 22 अक्टूबर को उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत से पाकिस्तान समर्थित हमलावर बारामूला में घुस चुके थे, यह इलाका श्रीनगर से 54 किलोमीटर दूर था। विलय के दस्तावेज़ की अनुपस्थिति में भारतीय सेना को कश्मीर में सेना भेजने में अभी कुछ दिन बाकी थे। ऐसे में शेरवानी ने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय सेना को श्रीनगर पहुंचने और हमलावरों से लड़ने के लिए पर्याप्त समय मिले।
मकबूल शेरवानी ने पाकिस्तानी हमलावरों को ऐसे किया गुमराह
इस घटना के दो अलग-अलग संस्करण हैं। एक में कहा गया कि मकबूल शेरवानी ने हमलावरों से कहा कि वह उन्हें श्रीनगर पहुंचने का सबसे छोटा रास्ता दिखाएंगे और फिर उन्हें गुमराह कर दिया। दूसरे के मुताबिक, उन्होंने हमलावरों से कहा कि भारतीय सेना पहले ही श्रीनगर में उतर चुकी है। अंततः जब हमलावर श्रीनगर के बाहरी इलाके में पहुंचे तो 7 नवम्बर 1947 को शाल्टेंग में भारतीय सेना ने उन्हें रोक लिया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
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मकबूल शेरवानी की बेरहमी से हत्या
8 नवम्बर 1947 को भारतीय सेना बारामूला पहुंची और मकबूल शेरवानी का शव बरामद किया। मकबूल ने कश्मीरियों की जान बचाने और भारतीय धरती पर आक्रमण का विरोध करने के लिए खुद को बलिदान कर दिया। हमलावरों ने उन्हें गुमराह करने के लिए मकबूल को बेरहमी से मार डाला।टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल कॉन्फ्रेंस के सबसे लोकप्रिय स्थानीय नेता मीर मकबूल शेरवानी को उनकी राजनीति के लिए यातनाएं दी गईं और अंत में उन्हें लकड़ी की सलाखों से बांधकर गोली मार दी गई। उनके शरीर में गोलियों के 14 निशान पाए गए।”
मकबूल के सम्मान में ‘डेथ ऑफ ए हीरो’ नामक उपन्यास लिखा गया
अन्य रिपोर्टों में बताया गया है कि हमलावरों ने उनके शरीर को लकड़ी के तख्ते पर कीलों से ठोंकने से पहले उनके माथे पर उर्दू में एक नोट चिपका दिया था जिसमें लिखा था, ‘वह देशद्रोही है, उसकी सजा मौत है।’ हमलावरों को बारामूला खदेड़ने के बाद, उनके शरीर को पूरे सैन्य सम्मान के साथ दफनाया गया। लेखक मुल्क राज आनंद ने मकबूल के सम्मान में ‘डेथ ऑफ ए हीरो’ नामक एक उपन्यास लिखा। हर साल भारतीय सेना अपने इन्फैंट्री दिवस पर उन्हें ‘कश्मीर के रक्षक’ के रूप में याद करती है। सेना ने बारामूला में उनके नाम पर एक स्मारक हॉल भी बनवाया है। पढ़ें- देश दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स