जम्मू क्षेत्र में शनिवार तड़के पाकिस्तान की ओर से दागे गए मोर्टार और ड्रोन हमलों में जम्मू-कश्मीर सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी और दो साल की बच्ची समेत पांच लोगों की मौत हो गई। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। जम्मू शहर और संभाग के अन्य प्रमुख कस्बों में सुबह पांच बजे विस्फोट की आवाजें सुनी गईं और सायरन बजने लगे। सीमा पार से हो रही भीषण गोलाबारी के कारण सीमावर्ती इलाकों में निवासी रात भर जागते रहे। रक्षा अधिकारियों के अनुसार, पाकिस्तान की ओर से पश्चिमी सीमाओं पर शनिवार को भी ड्रोन हमले और अन्य हथियारों से गोलीबारी जारी रहे। इस सबके बीच पाकिस्तानी सैनिकों की भारी गोलाबारी का लक्ष्य बना सीमावर्ती शहर पुंछ वीरान हो गया है और वहां के निवासी सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं।
स्थानीय निवासी सुरजन सिंह ने एक मदरसा शिक्षक की मौत का जिक्र करते हुए इंडियन एक्स्प्रेस से कहा, “कारगिल युद्ध के दौरान भी ऐसा नहीं था। हम हमेशा मानते थे कि पाकिस्तान जानबूझकर पुंछ शहर को निशाना बनाने से बचता है। इस बार पाकिस्तानी सेना ने गुरुद्वारों, मंदिरों और मस्जिदों के बीच कोई अंतर नहीं किया। कारी मोहम्मद इकबाल की हत्या मेरे घर के पास ही हुई।”
पुंछ में स्थानीय लोगों के घर पर गिर रहे गोले
सुरजन के घर पर गोला गिरा जिसमें वह बाल-बाल बच गए लेकिन इस घटना में उनके चचेरे भाई अमरजीत सिंह की मौत हो गई। अमरजीत, जो कि भूतपूर्व सैनिक थे सुरजन के पास ही सो रहे थे जब गोला गिरा। उन्हें छर्रे लगे और वे गंभीर रूप से घायल हो गए। सुरजन ने सवाल उठाया कि क्या जीवन कभी पहले जैसा हो सकेगा।
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पुंछ में रहने वाले हरचरण सिंह ने कहा, “मेरे दोस्त रिजवान ने अपने बच्चों अयान और अरूबा को खो दिया जब एक गोला उनकी कार पर गिरा। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।” उन्होंने कहा कि हालांकि लोगों को पता था कि वे ऊंचे इलाकों में स्थित पाकिस्तानी सेना की चौकियों की सीधी गोलीबारी की जद में हैं लेकिन हमेशा यह विश्वास था कि नागरिकों को निशाना नहीं बनाया जाएगा। हरचरण ने कहा, “बुधवार को यह विश्वास टूट गया।”
India-Pak: गोलाबारी बंद होते ही लोगों का पलायन शुरू
बुधवार दोपहर को जब गोलाबारी बंद हुई तो लोगों का पलायन शुरू हो गया। जो लोग वहां से चले गए उनमें से कई सुरनकोट, मंडी या दूर जम्मू शहर चले गए। सार्वजनिक परिवहन के अभाव में लोग सिर पर सामान लादकर सुरनकोट की ओर पैदल ही जाते दिखे।
70 वर्षीय सेवानिवृत्त वन अधिकारी खलील अहमद अपने वार्ड नंबर 10 स्थित घर से अपनी बेटी और उसके दो नाबालिग बच्चों सहित परिवार के साथ सुरनकोट चले गए। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान खलील दसवीं कक्षा में थे जब वे और अन्य स्थानीय युवा पाकिस्तानी घुसपैठियों को क्षेत्र से बाहर निकालने में भारतीय सैनिकों की सहायता करने के लिए खानपीर गए थे। उनके योगदान के लिए, उन्हें सेना द्वारा प्रशस्ति पत्र दिया गया था।
पुंछ में नागरिक सीधे पाकिस्तान की गोलाबारी की चपेट में आ रहे
खलील की करीबी रिश्तेदार साइमा काजी ने बताया कि बुधवार को हुई गोलाबारी के दौरान पूरा परिवार एक कमरे में दुबका हुआ था और प्रार्थना कर रहा था। उनके घर के ठीक बगल वाले घर पर एक गोला गिरा था। वैसे तो लोग पहले भी पुंछ को अस्थायी तौर पर खाली कर चुके हैं लेकिन अब कई लोग स्थायी रूप से कहीं और जाने पर विचार कर रहे हैं। स्थानीय निवासी एमडी अनवर ने कहा, “इस बार नागरिक सीधे गोलाबारी की चपेट में आ गए। हमें अब यह भरोसा नहीं है कि हम वापस लौटने के बाद सुरक्षित रह पाएंगे।” पढ़ें- भारत पाकिस्तान तनाव से जुड़े लेटेस्ट अपडेट्स