विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा, “भारत अपनी आजादी के बाद से ही इस चुनौती (आतंकवाद) का सामना कर रहा है, क्योंकि उसका पड़ोसी देश वैश्विक आतंकवाद का केंद्र है। दशकों से, बड़े अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी हमलों के तार उसी देश से जुड़े होते हैं। संयुक्त राष्ट्र की आतंकवादियों की सूची में उसके नागरिकों के नाम भरे पड़े हैं। सीमा पार बर्बरता का सबसे ताजा उदाहरण इस साल अप्रैल में पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों की हत्या थी।”

उन्होंने कहा, “देश खुलेआम आतंकवाद को अपनी स्टेट पॉलिसी घोषित करते हैं। जब आतंकवादी अड्डे औद्योगिक पैमाने पर संचालित होते हैं, जब आतंकवादियों का सार्वजनिक रूप से महिमामंडन किया जाता है, तो ऐसी कार्रवाइयों की स्पष्ट रूप से निंदा की जानी चाहिए। आतंकवाद की फंडिंग पर रोक लगाई जानी चाहिए, भले ही प्रमुख आतंकवादियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो, पूरे टेरेरिज्म ईकोसिस्टम पर लगातार दबाव डाला जाना चाहिए। जो लोग आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों का समर्थन करते हैं, उन्हें पता चलेगा कि यह उन्हें ही नुकसान पहुंचाएगा।”

हमें खतरों का भी दृढ़ता से सामना करना होगा- एस जयशंकर

आतंकवाद के अभिशाप का जिक्र करते हुए जयशंकर ने कहा, “अपने अधिकारों का दावा करते हुए, हमें खतरों का भी दृढ़ता से सामना करना होगा। आतंकवाद का मुकाबला करना प्राथमिकता है क्योंकि इसमें कट्टरता, हिंसा, असहिष्णुता और भय का समावेश होता है। भारत आजादी के बाद से ही इस चुनौती का सामना कर रहा है, क्योंकि उसका पड़ोसी दशकों से वैश्विक आतंकवाद का केंद्र रहा है।”

एस जयशंकर ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग का आह्वान किया क्योंकि आतंकवाद एक साझा खतरा है। भारत के तीन स्तंभों, आत्मनिर्भरता, आत्मरक्षा और आत्मविश्वास पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “जब ट्रेड की बात आती है, तो नॉन मार्केट प्रैक्टिस ने नियमों और व्यवस्थाओं के साथ खेल किया। अब हम टैरिफ में अस्थिरता और अनिश्चित बाजार पहुंच देख रहे हैं।” उनका इशारा ट्रंप प्रशासन के टैरिफ की तरफ था।

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विदेश मंत्री ने कहा कि संघर्षों के मामले में, खासकर यूक्रेन और गाजा में सीधे तौर पर शामिल न होने वालों ने भी इसका असर महसूस किया है। जो देश सभी पक्षों को शामिल कर सकते हैं, उन्हें समाधान खोजने में आगे आना चाहिए। भारत शत्रुता खत्म करने का आह्वान करता है और शांति बहाल करने वाली किसी भी पहल का समर्थन करेगा।

विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाया

जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाया, “संयुक्त राष्ट्र चार्टर हमसे न केवल युद्ध रोकने, बल्कि शांति स्थापित करने, न केवल अधिकारों की रक्षा करने, बल्कि हर एक मानव की गरिमा को बनाए रखने का आह्वान करता है। यह हमें अच्छे पड़ोसी की तरह खड़े होने, अपनी शक्ति को एकजुट करने की चुनौती देता है ताकि आने वाली पीढ़ियों को न्याय, प्रगति और स्थायी स्वतंत्रता का विश्व विरासत में मिले। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर बहस करने का एक स्वाभाविक मंच बन गया। हमें आज खुद से पूछना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरा है।”

इंटरनेशनल कम्युनिटी के लिए चुनौतीपूर्ण समय बताते हुए उन्होंने कहा, “एक विश्व व्यवस्था के लिए साझा उद्देश्य और दूसरों के प्रति सहानुभूति जरूरी है। इसीलिए हम संयुक्त राष्ट्र की ओर देखते हैं। हर उस सदस्य को, जो इस दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकता है, अपना सर्वश्रेष्ठ देने का अवसर मिलना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र का नौवां दशक नेतृत्वकारी प्रयासों का होना चाहिए।”