दक्षिण एशियाई देशों के संगठन आसियान-भारत के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने एक बेहतर ग्रह बनाने के लिए विभिन्न देशों के नेताओं के साथ मिल कर काम करने का संकल्प दोहराया। भारत इस सम्मेलन का सह-अध्यक्ष है। इसके ठीक बाद भारत की अध्यक्षता में दिल्ली में जी-20 का शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। उसका घोष वाक्य भी वसुधैव कुटुंबकम यानी पूरा विश्व एक परिवार है।
आसियान के साथ भारत का संबंध पूरब के साथ मिल कर काम करने और आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाने के संकल्प से जुड़ा हुआ है। दरअसल, विकसित कहे जाने वाले देश जिस तरह दुनिया पर अपना आर्थिक एकाधिकार जमाने की रणनीति बनाते रहे हैं, उसमें विकासशील और अविकसित देशों की क्षेत्रीय पहचान पर भी संकट गहराता गया है।
ऐसे में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों ने अपनी आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने और एकजुटता कायम करने के मकसद से यह संगठन बनाया था। शीतयुद्ध समाप्त होने के बाद इसके सदस्यों की संख्या निरंतर बढ़ती गई और अब ये देश व्यापारिक दृष्टि से खासी अहमियत हासिल कर चुके हैं। आसियान के साथ भारत का जुड़ाव न केवल व्यापारिक मकसद से, बल्कि पूर्वोत्तर में संतुलन साधने के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।
आसियान और जी-20 में भारत की स्थिति कई मामलों में निर्णायक है। ऐसा इसलिए भी कि दक्षिण एशिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जो विकासशील और विकसित देशों के बीच मजबूत सेतु का काम करता है। हालांकि आसियान के पूर्वी संगठन से चीन और रूस के भी जुड़ाव हैं, मगर जो भूमिका भारत निभा पाता है, वह इन दो देशों से अपेक्षित नहीं है।
इसके दस मूल सदस्य देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, विएतनाम, लाओस, म्यांमा और कंबोडिया भी आर्थिक महाशक्तियों का वैसा ही दबाव महसूस करते रहे हैं, जैसा कि भारत पर वे बनाने का प्रयास करते हैं। भारत के साथ आसियान देशों की निकटता इसलिए भी है कि इनका आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ताना-बाना काफी मेल खाता है और भारत न केवल उनकी व्यापारिक गतिविधियों, बल्कि क्षेत्रीय अस्मिता को भी पोसने में मदद करता रहा है।
इन देशों के साथ भारत के कुल विश्व व्यापार का दस फीसद से ऊपर व्यापार होता है और वह इन देशों को ग्यारह फीसद से अधिक निर्यात करता है। आसियान दुनिया का तेजी से उभरता बड़ा उपभोक्ता बाजार है। चीन और भारत के बाद यहां दुनिया की सबसे बड़ी श्रमशक्ति है। अगले कुछ सालों में यह दुनिया की चौथी आर्थिक शक्ति बनने की राह पर है। ऐसे में भारत की उससे निकटता आर्थिक बेहतरी की नई संभावनाएं पैदा करती है।
आसियान में भारत की महत्त्वपूर्ण होती गई भूमिका एक तरह से चीन, रूस और अमेरिका जैसे देशों के लिए संकेत भी है कि वह बाहरी बाजार के लिए उन पर निर्भर नहीं रहेगा। मगर आसियान का उद्देश्य आर्थिक महाशक्तियों को इस तरह चुनौती देना नहीं, बल्कि उन्नत राष्ट्रों के साथ रिश्तों को मजबूत बनाना और शांतिपूर्ण ढंग से मतभेदों को दूर करना है।
इसीलिए आसियान के आनुषंगिक मंचों से रूस, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों को भी जोड़ा गया। पूर्वोत्तर में जिस तरह चीन की दखल बनी रहती है, उसमें आसियान के जरिए उस पर अंकुश लगाने में काफी मदद मिलती रही है। प्रधानमंत्री ने एक बार फिर आसियान के मंच से यही संदेश दिया कि आपसी मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से निपटाया जाना चाहिए।