करीब 15 महीनों तक पूर्वी लद्दाख के गोगरा में आमने सामने रहने के बाद भारत और चीन की सेनाओं ने अपने अपने सैनिकों को पीछे हटा लिया। दोनों देशों की सेनाओं के उच्च अधिकारियों के बीच 12वें दौर की वार्ता के बाद यह समाधान निकला। गोगरा बिंदु को पेट्रोलिंग प्वाइंट(PP)-17ए के रूप में भी जाना जाता है। दोनों देशों के बीच हुए समझौते के बाद पेट्रोलिंग प्वाइंट-17ए में एक नो पेट्रोलिंग जोन बनाया गया है। नो पेट्रोलिंग जोन में दोनों देश की सेनाएं पेट्रोलिंग नहीं कर सकती हैं। आइये जानते हैं कि ये नो पेट्रोलिंग जोन क्या होते हैं और ये कहां कहां हैं।

दरअसल जब दो देशों की सेनाएं किसी ख़ास बिंदु से दूर रह कर एक दूसरे की गतिविधियों पर नजर रखती है और उस ख़ास बिंदु के पास किसी भी देश की सेना को पेट्रोलिंग करने की अनुमति नहीं होती है तो उसे नो पेट्रोलिंग ज़ोन कहा जाता है। इन बिंदुओं पर एक समय अंतराल के दौरान दोनों देशों की सेनाओं को जाने की अनुमति नहीं होती है। साथ ही इस नो पेट्रोलिंग ज़ोन की वजह से दोनों देशों की सेनाओं के बीच होने वाले टकराव को भी रोका जाता है।

भारत और चीन की सीमाओं के बीच नो पेट्रोलिंग जोन बनाने की शुरुआत साल 1962 में दोनों देशों के बीच हुए युद्ध के दौरान हुई थी। 21 नवंबर 1962 को चीन ने अपनी ओर से युद्ध विराम की घोषणा के बाद अपने सैनिकों को करीब 20 किलोमीटर पीछे हटा लिया था। जिसके बाद दोनों देशों के बीच पहली बार एक तरह का बफर जोन बना था। 

साल 2013 में भारत ने भी दोनों देशों के बीच उत्पन्न हुए सीमा विवाद को ख़त्म करने के लिए यही रणनीति अपनाई थी। साल 2013 में जब चीनी सैनिकों ने डेपसांग के इलाके में अपने तंबू लगाए थे तो भारत ने इस गतिरोध को ख़त्म करने के लिए कुछ इलाको में पेट्रोलिंग को तात्कालिक तौर पर रोक दिया था। इसके बाद साल 2014 में भी भारत ने गतिरोध को ख़त्म करने के लिए चुमार के इलाके में पेट्रोलिंग को रोक दिया था।  

गोगरा से दोनों देश की सेना हटने के बाद PP17A तीसरा क्षेत्र होगा जहां भारतीय सेना गश्त नहीं कर सकेंगी। पिछले साल पहला नो पेट्रोलिंग जोन गलवान घाटी में बनाया गया था। इसके बाद इस साल फ़रवरी के महीने में पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से से भी दोनों देश हटने पर सहमत हुए थे।