जब स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है तो बस्ती का नाम भी आता है। दरअसल बस्ती जिले के छावनी कस्बे में एक पीपल का पेड़ मौजूद है। इसे शहीद स्थल के नाम से भी जानते हैं। इस पीपल के पेड़ पर 250 क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया था।
एक साथ 250 क्रांतिकारियों को फांसी
250 क्रांतिकारियों को 1857 में पहली क्रांति के दौरान जनरल किले की हत्या के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने एक साथ फांसी पर लटका दिया था। सभी क्रांतिकारियों पर राजद्रोह का आरोप था। उस दौरान पूरे इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया गया था और फांसी दी गई थी।
इसके बाद से ही क्षेत्र का नाम छावनी पड़ गया। इस इलाके को अमोढ़ा नाम से भी जानते हैं। स्वतंत्रता सेनानियों की याद में एक शहीद स्मारक पार्क बनाया गया है और यहां पर एक पीपल का पेड़ है, जो इसका केंद्र है।
सांसद ने की थी राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग
वर्ष 2018 में बस्ती के तत्कालीन सांसद हरीश द्विवेदी ने लोकसभा में अमोढ़ा में शहीद स्थल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की थी। उनका कहना था कि यह स्वतंत्रता सेनानियों का 1857 में मुख्य आश्रय था और 250 क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाया गया था। इसी कारण इसे राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाए।
अमोढ़ा एक रियासत
अमोढ़ा एक रियासत थी, जिसकी रानी तलाश कुंवारी थी। उन्होंने अंग्रेजों से आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी। जब रानी की शहादत हो गई तो उनके सेनापति अवधूत सिंह ने क्रांतिकारियों के साथ 6 मार्च 1858 को लड़ाई लड़ी। उन्होंने अन्य इलाकों में भी युद्ध किया। उस दौरान जो भी क्रांतिकारी अंग्रेजों की पकड़ में आते थे, उन्हें पीपल के पेड़ पर फांसी दी जाती थी। इसी पीपल के पेड़ के पास एक प्रसिद्ध आम का पेड़ भी था, जिस पर अंग्रेजों ने कई क्रांतिकारियों को फांसी दी थी।
लालकृष्ण आडवाणी कर चुके हैं दौरा
बता दें कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी भी यहां पर आ चुके हैं। जब उन्होंने यहां का दौरा किया था, तब उन्होंने भाषण भी दिया था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि सतारा के बाद छावनी इकलौती ऐसी जगह है, जहां इतने लोगों के एक साथ बलिदान का प्रमाण है। उन्होंने इसे तीर्थ स्थल बताया था।