रंजना मिश्रा

यह विडंबना ही है कि एक तरफ देश में भुखमरी के चलते लोगों की मौत हो जाती है और दूसरी तरफ गोदामों में रखे अनाजों को सड़ने से बचाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई है। इसके अलावा, अधिक मात्रा में भोजन की बर्बादी खाद्य संकट पैदा करती है। वहीं सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति सभी खाद्यान्नों पर न होकर कुछ ही खाद्यान्नों के लिए है।

भोजन व्यक्ति को पोषण, विकास और जीवन देता है और उसे प्राप्त करना हर नागरिक का मूलभूत अधिकार है। एक सशक्त अर्थव्यवस्था में ही कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन संभव है। लेकिन भारत की बढ़ती जनसंख्या और सीमित संसाधनों के कारण आज भी हमारे देश में गरीबी और खाद्य असुरक्षा की स्थिति बनी हुई है, जो बेहद चिंता का विषय है।

‘द ग्लोबल फूड पालिसी रिपोर्ट 2022’ में कहा गया है कि भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 तक नौ करोड़ से ज्यादा भारतीयों को भुखमरी का सामना करना पड़ेगा। रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले सत्तर से अस्सी सालों में फसलों की पैदावार में काफी ज्यादा कमी आ जाएगी। साथ ही लू और गर्मी का स्तर भी कई गुना ज्यादा बढ़ जाएगा।

सामान्य परिस्थितियों में यह आंकड़ा 7.39 करोड़ होता, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या में 23 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। इंटरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2100 तक भारत के साथ अमेरिका, कनाडा, जापान, स्विट्जरलैंड, रूस और ब्रिटेन जैसे सभी देश, चाहे वे अमीर हों या गरीब, उष्ण हों या शीत सभी खाद्य संकट से प्रभावित होंगे।

संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ की एजेंसियों की नई रिपोर्ट के अनुसार संघर्ष, आर्थिक संकट और मौसम में आ रहे बदलावों के कारण दुनिया भर में भूख से पीड़ित लोगों की संख्या 2021 में और बढ़ गई है। बावन देशों में करीब उन्नीस करोड़ लोगों को अचानक खाद्य सुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। 2020 की तुलना में पीड़ितों की संख्या में चार करोड़ की वृद्धि दिख रही है। वहीं रूस और यूक्रेन युद्ध ने भी वैश्विक खाद्य उत्पादन को काफी प्रभावित किया है। कांगो, यमन, अफगानिस्तान, इथियोपिया, सूडान, सीरिया और नाइजीरिया जैसे देशों में चल रहे संघर्षों के कारण वहां खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा और बढ़ रहा है।

पौष्टिक और पर्याप्त भोजन तक लोगों की पहुंच सुनिश्चित न होना ही खाद्य संकट है। जब धन या अन्य संसाधनों के अभाव में लोग भुखमरी के शिकार होने लगें तो खाद्य संकट की स्थिति कही जाती है। मोटे तौर पर खाद्य संकट को दो भागों में बांट सकते हैं। कई लोगों को भरपेट खाना नहीं मिल पाता या उनके परिवार को राशन मुहैया नहीं हो पाता, इसे मध्यम स्तरीय खाद्य संकट कहते हैं।

इस संकट में लोगों को भोजन की मात्रा और गुणवत्ता के साथ समझौता करना पड़ता है। दूसरा है गंभीर खाद्य संकट, इस संकट में लोगों को कई दिनों तक भोजन नहीं मिलता। उन्हें पौष्टिक और पर्याप्त आहार उपलब्ध नहीं हो पाता। लंबे समय तक यही स्थिति बने रहने पर यह भूख की समस्या का रूप धारण कर लेती है। इस प्रकार भूख से होने वाली मौतें गंभीर खाद्य संकट के कारण ही होती हैं। सवाल है कि खाद्य असुरक्षा बढ़ने के आखिर क्या कारण हैं?

दरअसल, भारत में खाद्य असुरक्षा की सबसे बड़ी वजह गरीबी है। आर्थिक तंगी के चलते कई लोगों को पर्याप्त और पोषणयुक्त भोजन नहीं मिल पाता, जिससे वे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। फिर हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि की तुलना में खाद्यान्नों का उत्पादन कम रहा और यही कारण है कि आज भी खाद्यान्न समस्या एक गंभीर समस्या बनी हुई है।

चूंकि कृषि योग्य जमीन सीमित है और भूमि की उत्पादकता बढ़ाने की बात की जाए तो हरित क्रांति भी अपने सीमित प्रभाव के कारण खाद्य समस्या को हल करने में सफल नहीं हो सकी। कृषि उत्पादन तेजी से न बढ़ पाने का एक कारण यह भी है कि रासायनिक खाद, अधिक उपज वाले बीज आदि कृषि के जरूरी साधन अधिक सुगमता से उपलब्ध नहीं रहे और अपने अधिक मूल्यों के कारण भी ये साधारण किसानों की पहुंच से दूर रहे।

इसके अलावा, समय-समय पर सूखे और बाढ़ की आपदाओं के कारण भी यह समस्या गंभीर रूप ले लेती है। फिर अनियमित आपूर्ति, यानी जितने खाद्य का उत्पादन होता है, वह सब उपभोक्ता तक नहीं पहुंच पाता, बल्कि कीट-पतंगों, चूहों, पक्षियों और अन्य कई कारणों से बहुत सारा अनाज बर्बाद हो जाता है। कभी-कभी भंडारण किया हुआ अनाज भी बहुत मात्रा में सड़ जाता है।

चूंकि भारत में अधिकांश फसलें सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भर हैं और मानसून अनिश्चित और अनियमित होता है। इस कारण खाद्यान्न का उत्पादन भी अनिश्चित रहता है। महंगाई के चलते खाद्यान्नों की कीमतों में बढ़ोत्तरी होने से, निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए उन्हें खरीद पाना बहुत कठिन हो जाता है। योजनाओं का सही प्रकार से क्रियान्वयन न हो पाने के कारण भी खाद्य असुरक्षा बढ़ती है।

यह विडंबना ही है कि एक तरफ देश में भुखमरी के चलते लोगों की मौत हो जाती है और दूसरी तरफ गोदामों में रखे अनाजों को सड़ने से बचाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई है। इसके अलावा, अधिक मात्रा में भोजन की बर्बादी खाद्य संकट पैदा करती है। वहीं सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति सभी खाद्यान्नों पर न होकर कुछ ही खाद्यान्नों के लिए है। इससे कृषक प्रोटीनयुक्त अनाज के स्थान पर केवल कुछ खाद्यान्नों की खेती को अधिक महत्त्व देते हैं।

इस संकट को दूर करने के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर कई नीतियां बनाई जाती हैं और उनका क्रियान्वयन किया जाता है। लेकिन इस मसले पर जो भी पहलकदमी हुई है, उसके समांतर यह जरूरी है कि देश में गरीबी को कम करने का प्रयास किया जाए। साथ ही जनसंख्या नियंत्रण भी बहुत जरूरी है। बेरोजगार लोगों को अधिक से अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध करा कर गरीबी पर नियंत्रण किया जा सकता है, जिससे लोगों की परिवारिक आर्थिक तंगी दूर होगी और वे पौष्टिक आहार ले सकेंगे।

कार्य करने में अशक्त लोगों और अत्यधिक गरीब परिवारों को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे भुखमरी का शिकार होने से बच सकें। हालांकि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत सरकार गरीबों के खाते में पैसे जमा करा रही है, लेकिन बढ़ती हुई महंगाई को देखते हुए इसमें और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत कुछ ही खाद्य उत्पादों का वितरण किया जाता है। इनमें पौष्टिकता प्रदान करने वाले कुछ अन्य खाद्यान्नों को भी शामिल करने की आवश्यकता है। कुछ चुनिंदा फसलों के बजाय पोषण देने वाली दूसरी फसलों पर भी सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाना चाहिए, ताकि किसान उन फसलों का भी अधिक उत्पादन करें।

खाद्यान्न उत्पादन में देश को अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता है, ताकि हमारे देश में खाद्यान्न की कमी न हो और किसी अन्य देश से आयात न करना पड़े। गोदाम में जमा किए गए खाद्यान्न को सड़ने से बचाने के लिए सभी आवश्यक उपाय करने चाहिए। सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं हो पाता, जिससे सही पात्र को उसका फायदा नहीं मिल पाता।

इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है और इस कमी को दूर किया जाना चाहिए, ताकि गरीब से गरीब व्यक्ति सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सके। नागरिकों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराना देश की सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, तभी राष्ट्र का विकास संभव हो पाएगा। गरीबी-बेरोजगारी के उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के बिना किसी भी देश का युवा वर्ग मजबूत नहीं हो सकता।