उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में जो कलह चल रही है उसने 1995 में तेलुगुदेशम पार्टी में एनटी रामाराव और चंद्रबाबू नायडू के बीच के झगड़े की यादें ताजा कर दी हैं। उस समय चंद्रबाबू ने अपने ससुर और उस समय के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एनटी रामाराव के खिलाफ आवाज उठाई थी। रोचक बात है कि दोनों पार्टियों का चुनाव चिन्ह भी साइकिल है। हालांकि एक अंतर भी। इसके अनुसार 1995 में एनटीआर सीएम थे और उनके खिलाफ विद्रोह हुआ था जबकि यूपी में खुद सीएम अखिलेश यादव ने ही विद्रोह कर रखा है। 22 अगस्त 1995 को विजाग के डॉल्फिन होटल से शुरू हुआ टीडीपी का विवाद नौ दिन तक चला। नायडू ने एनटीआर को सीएम और पार्टी अध्यक्ष दोनों पदों से हटा दिया था। टीडीपी के 216 में से 198 विधायकों के समर्थन के सहारे पांच दिन बाद नायडू खुद सीएम बन गए। घटना से दुखी एनटीआर हैदराबाद के बंजारा हिल्स स्थित घर को लौट गए। बचे हुए 18 विधायक भी बाद में नायडू के साथ चले गए।
एनटीआर ने 29 मार्च 1982 को टीडीपी का गठन किया था। उनके नेतृत्व में पार्टी ने तीन चुनाव जीते। 1994 में आखिरी बार उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया जिसमें पार्टी ने 294 में से 216 सीटें जीती। एनटीआर के खिलाफ दो बातें गई। पहली उनकी तबीयत और दूसरा एनटीआर की दूसरी बीवी लक्ष्मी पार्वती की दखल। पार्वती की दखल से टीडीपी में असंतोष था। एक वरिष्ठ विधायक ने घटनाक्रम को याद करते हुए बताया, ”टीडीपी विधायक, पार्टी नेता और यहां तक कि नौकरशाह भी लक्ष्मी पार्वती से नाराज थे। एक समय था जब वे पार्टी के साथ ही सरकार भी चलाती थीं। ऐसी खबरें थी कि खराब स्वास्थ्य के चलते एनटीआर पार्वती को ही पार्टी की कमान सौंप सकते हैं। एनटीआर धार्मिक बन गए थे और उन्होंने भगवा कपड़े पहनना शुरू कर दिया था। पार्वती के चलते एनटीआर का परिवार भी उनसे दूर हो गया था। एनटीआर के बेटे बालकृष्ण पार्टी संभाल सकते थे लेकिन वे नेता नहीं थे और उन्होंने भी नायडू का समर्थन किया।”
इस बारे में एक अन्य टीडीपी नेता ने बताया, ”एनटीआर और लक्ष्मी पार्वती ने नायडू को पीठ में खंजर भोंकने वाला और औरंगजेब बताया। लेकिन तख्तापलट हुआ क्योंकि यह पार्टी के हित में था। हमारा अब भी मानना है कि अगर नायडू ने टीडीपी को नहीं संभाला होता तो पार्टी खत्म हो गई होती। यूपी में आज स्क्रिप्ट अलग हो सकती है लेकिन कहानी यही है।” चंद्रबाबू नायडू आज आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उस घटना के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। तख्तापलट के बाद नायडू ने एनटीआर के परिवार के कई लोगों को विधानसभा, लोकसभा और राज्य सभा भेजकर राजी कर लिया था।