पिछले दो सालों से जेल की छोटी सी सेल में बेहद मामूली चीजों के सहारे जीवन बीता रहे सहारा प्रमुख सुब्रत राय ने अपनी किताब का विमोचन सोमवार को जेल मे किया। किताब के विमोचन के लिए उन्होंने अपने कंपनी सहारा का 39वां स्थापना दिवस चुना। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में उनकी बेहद महत्वपूर्ण सुनवाई भी होनी है।

इस मौक पर सहारा प्रमुख ने कहा कि वो अब तक नहीं समझ सके हैं कि उन्होंने आखिर ऐसा क्या गलत काम किया है जिसकी सजा उन्हें भुगतनी पड़ रही है। उन्होंने जेल के जीवन बेहद एकांत और दर्दभरा बताया। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कहा कि वो अपने को सभी प्रकार की चिंताओं से मुक्त रखने की कोशिश करते हुए शांत जीवन जीने का प्रयास करते हैं।

सहारा प्रमुख ने तिहार जेल में न्यायिक हिरासत में रहते हुए अपनी तीन किताबों की सीरीज ‘थॉट फ्रॉम तिहार’ के पहले पार्ट ‘लाइफ मंत्रास’ को लिखा है। निवेशकों के करोड़ो रुपये ना चुका पाने के कारण सुब्रत राय पर सेबी ने शिकंजा कस रखा है। राय ने अपनी किताब में लिखा है कि, “कैद में दूसरे सभी लोगों की तरह मैं भी कभी-कभी अपने भावनाओं पर काबू नहीं रख पाता हूं। मेरे दिमाग में अक्सर यह विचार आता है ‘मैं ही क्यों, मैंने ऐसा क्या गलत किया है जिसकी मुझे यह सजा मिल रही है।’

राय ने अपनी किताब में लिखा है कि बाहरी दुनिया के बिना किसी संपर्क के रहना बेहद बुरा अनुभव है हालांकि समय धीरे-धीरे परिस्थितियों का आदी बना देता है। पैसा आच्छा सेवक है लेकिन बुरा मालिक है। जो लोग सिर्फ पैसो को एहमियत देते हैं उनके बारे में जिक्र करते हुए सहारा प्रमुख ने कहा कि ऐसे लोग कहते है कि अगर उनके पास पैसा हो तो वो अच्छा जीवन जी सकते हैं। अगर ऐसे लोगों की सारी इच्छाएं पूरी कर दी जायें और जब वो अपने जीवन का आनंद ले रहे हो उसी समय उन पर यह शर्त थोप दी जाये कि उन्हें अकेले रहना होगा, उन्हें एक कमरे में कैद रहना होगा। उन्हें बाहर किसी से संपर्क नहीं रखने दिया जायेगा, ना टीवी ना रेडियो कुछ भी नहीं। ऐसे हालत में कोई बीस दिन रह सकता है कोई तीस तो कोई चालिस लेकिन उसके बाद आदमी पागल हो जायेगा। उसकी आंतरिक जरूरतें पूरी नहीं होगी, वो ना तो किसी से बात कर सकता है ना किसी से अपना दर्द बांट सकता है। राय आगे कहते हैं कि अगर आप में से किसी को मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा तो वो मुझसे व्यक्तिगत् रूप से मिले।