विशेष डेस्क़

पिछले वर्ष जी20 देशों पर जारी एक अंतरराष्ट्रीय जलवायु रिपोर्ट में कहा गया था कि यदि कार्बन उत्सर्जन तेजी से बढ़ता रहा तो वैश्विक तापमान में चार डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है। इसके कारण 2036 से 2065 के बीच भारत में लू का कहर कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। अनुमान है कि इसके सामान्य से 25 गुना अधिक समय तक बढ़ने की आशंका है।

इस रिपोर्ट को पिछले साल 30 से 31 अक्तूबर के बीच रोम में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन से पहले जारी किया गया था। यह रिपोर्ट यूरो-मेडिटेरेनियन सेंटर आन क्लाइमेट चेंज से जुड़े 40 से अधिक वैज्ञानिकों की एक टीम ने तैयार की थी। यह शोध केंद्र इंटरगवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) के इतालवी केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करता है। इस रिपोर्ट के अनुसार भविष्य में जलवायु परिवर्तन का जी20 के प्रत्येक सदस्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।

रिपोर्ट में चेताया गया है कि जलवायु में आ रहा बदलाव पहले ही जी20 देशों को प्रभावित कर रहा है। 20 वर्षों के दौरान सभी जी20 देशों में गर्मी से संबंधित मौतों में 15 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि समुद्र के बढ़ते जल स्तर से लेकर साफ पानी की घटती उपलब्धता और डेंगू के कहर से लेकर भीषण गर्मी के कारण होने वाली मौतों तक जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं होगा जो जी20 देशों में जलवायु परिवर्तन से अछूता रह जाएगा।

30 वर्षों के भीतर जलवायु परिवर्तन दुनिया की सबसे अमीर अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर असर डालेगा। यदि ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को रोकने के लिए अभी कार्रवाई न की गई तो लू, सूखा, समुद्र के बढ़ते जल स्तर, खाद्य आपूर्ति में आती कमी और पर्यटन पर बढ़ते खतरे से कोई भी देश नहीं बच पाएगा। अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए जी20 देशों को अपने उत्सर्जन में तेजी से कटौती करने की जरूरत है, जोकि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 80 फीसद है।

भारत पर सबसे अधिक दुष्प्रभाव

इस बारे में जलवायु वैज्ञानिक और आइपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में से एक अंजल प्रकाश ने बताया कि भारत में कई जलवायु हाटस्पाट हैं। यह 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा से लेकर उत्तर और पूर्वी भारत के कई राज्यों में हिमालय तक फैले हैं। वहीं 54 फीसद शुष्क क्षेत्र में लू की संभावना है। उनके अनुसार इस मामले में भारत बेहद असुरक्षित है और यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती तो स्थिति जल्द खराब हो सकती है।

रिपोर्ट के मुताबिक यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि चार डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो भारत में 2036 से 2065 के बीच लू का कहर सामान्य से 25 गुना अधिक समय तक रहेगा। वहीं यदि तापमान में हो रही वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच जाती है तो भी लू का कहर पांच गुना अधिक समय तक रहेगा। यही नहीं यदि हम तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने में कामयाब हो भी जाते हैं तो भी लू का कहर करीब डेढ़ गुना बढ़ जाएगा।

भारत मेंं गर्मी का बढ़ता कहर लोगों की आजीविका को भी प्रभावित करेगा। अनुमान है कि 2050 तक कम उत्सर्जन परिदृश्य में भी 2050 तक श्रम उत्पादन में करीब 13.4 फीसद की गिरावट आ जाएगी. वहीं मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत 2080 तक यह आंकड़ा बढ़कर 24 फीसद तक हो जाएगा। यदि तापमान में हो रही वृद्धि 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ती है तो 2050 तक कृषि के लिए पानी की मांग 29 फीसद बढ़ जाएगी। वहीं 2036 से 2065 के बीच कृषि संबंधित सूखा 48 फीसदी बढ़ जाएगा। वहीं दो डिग्री सेल्सियस वृद्धि के परिदृश्य में यह समान समयावधि में 20 फीसद तक गिर जाएगा।

रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक जलवायु परिवर्तन के मध्यम परिदृश्य में भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का करीब 0.8 से दो फीसद तक हिस्सा खो देगा। वहीं उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में यह लागत दोगुनी हो सकती है, जो 10 फीसद तक बढ़ सकती है। यदि उत्सर्जन में वृद्धि तीव्र गति से होती रही तो 2050 तक देश में करीब 1.8 करोड़ लोग नदियों में आने वाली बाढ़ की जद में होंगे, जोकि वर्तमान की तुलना में 15 गुना ज्यादा है। गौरतलब है कि वर्तमान में 13 लाख लोगों पर इस तरह की बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है।