लोकनायक (एलएनजेपी) अस्पताल में एक के बाद एक सायरन बजाती पहुंच रही एंबुलेंस के शोर के आगे दम तोड़ चुके मरीजों के परिजनों के रोने बिलखने की आवाजें दब सी रही हैं। यहां तीन मरीजों को लेकर आई एंबुलेंस से उतर रहे मरीज अपनों को खो चुके परिजनों की रोने की आवाज से दहशत में आ जाते हैं।
गंभीर मरीज लेकर गेट नंबर चार से एंबुलेंस सीधे मुख्य इमरजेंसी द्वार के आगे पहुंची। पीछे से आ रहे घर वालों को गेट पर ही गार्ड रोक कर पूछताछ करने लगते हैं। गेट पर ही गार्ड ने बोल दिया ‘दिल्ली के हो तभी आगे जाओ वरना सफदरजंग ले जाओ यहां अब केवल दिल्ली वाले ही आएंगे’। कहते हुए वह झिझक भी रहा था, मानो खुद भी आदेश से सहमत नहीं हो। मरीज दिल्ली के ही थे, सो आगे बढ़ने दिया। आगे सिविल डिफेंस के एक कर्मी ने उनका नाम और परेशानी पूछी और एक पर्ची बना कर अंदर वार्ड में बैठे डॉक्टर को दे आया। मरीज वहीं रहे।
दिल्ली सरकार के आदेश के बाद दिल्ली के अस्पतालों में यही दृश्य हर कुछ मिनट के अंतराल पर दिखा। यहां मरीजों के दर्द और बीमारी से ज्यादा लोगों को परवाह उनके पहचान पत्र की थी। लोकनायक अस्पताल में लगातार एक कर्मचारी आकर कह रहा था कि ‘कोई दिल्ली के बाहर से आया है तो वह सफदरजंग, एम्स या आरएमएल चला जाए। यहां केवल वे ही मरीज रुके जिनके पास दिल्ली का आधार कार्ड, डीएल या राशन कार्ड हैं’।
मरीज के परिजन आदिल ने बताया कि वह न्यूज देखे थे इसलिए कागज लेकर आए हैं। एक अन्य मरीज के तीमारदार राजेश ने बताया कि उसके जानने वाले एक मरीज को जीटीबी अस्पताल में इलाज करने से मना कर दिया क्योंकि वह गाजियाबाद के इंदिरापुरम में रहते हैं। यहां पहले से भर्ती कुछ मरीजों को ऊपर वार्ड में ले जाने के लिए फिर एंबुलेंस आई और यहां से लेकर दो नंबर गेट से मेन मेडिकल ब्लॉक में मरीज पहुंचाए गए। इस बीच यहां सात मरीजों की मौत हो गई। उनके परिजन रोते बिलखते पैदल ही शवगृह की ओर जा रहे थे।

