महाराष्ट्र की सत्ता से हाथ धोने के बाद उद्धव ठाकरे के सामने लगातार मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। शिवसेना पर वर्चस्व को लेकर चल रही लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची है तो सत्ता जाने के बाद भी नेताओं के जाने का सिलसिला नहीं रुक रहा है। फिलहाल सूबे में सरपंचों को लेकर हुए चुनाव में उद्धव गुट को करारा झटका लगा है। उनका प्रदर्शन सूबे में सबसे ज्यादा खराब रहा।

राज्य में 547 में से बीजेपी शिंदे गुट ने 299 सीटों पर कब्जा किया। इसमें बीजेपी ने अकेले दम पर 17 जिलों में 259 सीटें जीतीं। जबकि शिंदे कैंप के पास 40 सीट गईं। उद्धव ठाकरे की बात की जाए तो उसका प्रदर्शन सूबे के सारे सियासी दलों के बीच सबसे खराब रहा। राकांपा ने जहां 130 सीट जीतीं। वहीं कांग्रेस ने भी तकरीबन 80 सीटों पर अपना परचम लहरा दिया। लेकिन उद्धव ठाकरे का गुट 40 के आंकड़े पर आकर सिमट गया।

हालांकि बीजेपी शिंदे गुट इसे अपनी जीत बता रहा है लेकिन उद्धव गुट एमवीए को मिली सीटों को लेकर अपनी पीठ थपथपा रहा है। उसका कहना है कि महाविकास अघाड़ी को जो सीटें मिलीं वो बीजेपी-शिंदे गुट को मिली सीटों के तकरीबन बराबर ही हैं। अघाड़ी के नेता मान रहे हैं कि सूबे में अब राकांपा और बीजेपी के बीच मेन लड़ाई होने के आसार लग रहे हैं। उद्धव की शिवसेना दूसरी जमात में बैठकर अपने प्रदर्शन को बेहतर करेगी।

बीजेपी का कहना है कि सरपंच चुनाव के दौरान लोगों ने शिवसेना के 2.5 साल के राज और बीजेपी-शिंदे गुट के 2 महीने के राज को परखा। उसके काम को लोगों ने सराहा है तभी उन्हें इतनी सीट मिली। उधर शिंदे ने इस चुनाव के नतीजों पर उद्धव को संदेश दिया कि वो पहले से कह रहे थे कि राकांपा शिवसेना को खत्म करने में लगी है। लेकिन वो उन्हें अनसुना ही करते रहे। उनका कहना है कि एमवीए सरकार बनने के बाद से ही राकांपा ने शिवसेना को समेटना शुरू कर दिया था। नतीजे सबसे सामने हैं।

कांग्रेस के राज्य प्रधान नाना पटोले शिवसेना की आंतरिक उठापटक को कमजोर नतीजों के लिए जिम्मेदार नहीं मानते। उनका कहना है कि डायरेक्ट सरपंच का चुनाव कराने का फैसला शिंदे बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा। उनका कहना था कि सत्ता ने भी अपना खेल खेला। ध्यान रहे कि ग्राम पंचायत और सरपंच के चुनाव 17 जिलों के 51 ताल्लुकों में रविवार को हुए थे।