अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारक) कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित संगठनों के आह्वान पर सोमवार (2 अप्रैल) को भारत बंद का आयोजन किया गया था। इस दौरान देश के कई हिस्सों में हिंसक घटनाएं हुईं। इसमें 10 लोगों की जान चली गई और व्यापक पैमाने पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। कई राज्यों में ट्रेन परिचालन को भी ठप किया गया। प्रदर्शनकारियों ने इसी क्रम में एक तेज रफ्तार ट्रेन को रोकने की कोशिश की थी, लेकिन ट्रेन चालक ने ट्रेन की गति कम नहीं की थी। ट्रेन को रुकता न देख पटरी पर जमा प्रदर्शनकारी भाग खड़े हुए। फेसबुक पर वीडियो के आने के बाद से अब तक 31 हजार लोग इसे शेयर कर चुके हैं, जबकि 27 हजार से ज्यादा लोगों ने इसे लाइक किया है। सोशल साइट पर प्रतिक्रिया देते हुए लोग सरकार को सलाह दे रहे हैं कि ऐसे प्रदर्शन से निपटने का तरीका इस ट्रेन के ड्राइवर से सीखना चाहिए। निखिल पुरोव ने लिखा, ‘ट्रेन ड्राइवर ने रास्ता दिखाया है। सरकार को इससे सीख लेनी चाहिए।’ हरन ने टिप्पणी की, ‘मैं ट्रेन ड्राइवर को सलाम करता हूं। वह आमलोगों के प्रशंसा का हकदार है।’ वहीं, श्रीनिवासन कृष्णन ने लिखा, ‘इस ड्राइवर को अन्य ट्रेन चालकों को पढ़ाना चाहिए।’ मालूम हो कि देश के अनेक हिस्सों में ट्रेन परिचालन को रोकने से हजारों की तादाद में यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ा था।
भारत बंद का व्यापक असर: भारत बंद का मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में व्यापक असर रहा। इस दौरान हुई हिंसा में मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा सात लोग मारे गए थे। उत्तर प्रदेश में दो और राजस्थान में एक लोगों की मौत हो गई थी। प्रदर्शनकारियों ने जमकर तोड़फोड़ की और वाहनों में आग लगा दी। इसके अलावा गुजरात और झारखंड में भी भारत बंद का व्यापक असर पड़ा। मध्य प्रदेश के मुरैना और ग्वालियर और उत्तर प्रदेश के मेरठ में हिंसा की कई घटनाएं हुईं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने एससी/एसटी एक्ट में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए बिना जांच गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर की है, ताकि इसमें किए गए बदलाव को निष्प्रभावी किया जा सके। इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत अमल में लाया गया था। इसमें अस्पृश्यता या छुआछूत की मनाही का प्रावधान है। इस कानून के जरिये दलितों और आदिवासियों को ज्यादा सुरक्षा देने का प्रयास किया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसमें बदलाव करने के बाद कई हलकों में इसको लेकर चिंता जताई जा रही है।