आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोट बंद करने (विमुद्रीकरण) की घोषणा की। पीएम मोदी की घोषणा के बाद से ही देश में अफरा-तफरी का माहौल है। 10 नवंबर से सभी बैंकों और डाकघरों से पैसे निकाले और बदले जाने लगे। 11 नवंबर से देश के सारे एटीएम से पैसों की निकासी शुरू हो गई। लेकिन जनता की मुश्किल तब बढ़ गई जब  बैंकों, डाकघरों और एटीएम में कुछ ही घंटों में नगद पैसे खत्म होने लगे। पूरे देश से नोटबंदी के कारण लोगों की जान जाने की खबरें आने लगीं। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के कारण अब तक करीब दो दर्जन लोगों की जान जा चुकी है। कई जगहों पर 500 और 1000 के पुराने नोटों को कम मूल्य पर बदलने की खबरें आई हैं।

ये पहली बार नहीं था जब देश में बड़े नोटों का विमुद्रीकरण किया गया। भारत में पहली बार आजादी से पहले 1946 में विमुद्रीकरण किया गया। दूसरी बार 1978 में मोरारजी देसाई सरकार ने बड़े नोटों का विमुद्रीकरण किया था। जब देश में पहली बार विमुद्रीकरण किया गया तो भी कमोबेश आज जैसे ही हालात थे। उस समय के अखबारों में प्रकाशित खबरों के अनुसार लोगों को जिस तरह की दिक्कतें आज हो रही हैं वही तब भी हो रही थीं। 1946 में सरकार ने नोटबंदी से पहले एक अधिनियम लाकर भारत में प्रचलित नोटों की गिनती सुनिश्चित की थी।

सरकार ने 11 जनवरी 1946 को 500, 1000 और 10,000 के बड़े नोट बंद करने की घोषणा की।  12 जनवरी को जब विभिन्न अखबारों में ये खबर प्रकाशित हुई तो लोगों में अफरा-तफरी मच गई। नोटबंदी के कारण लोगों को जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ा वो कई दिनों तक अखबारों में प्रमुखता से छपा। लोग 500, 1000 और 10,000 के नोटों को 60 से 70 प्रतिशत मूल्य पर बदल रहे थे। उस समय ये अफवाह भी फैल गई सरकार का अगला फैसला 100 के नोट बंद करने का हो सकता है। इसलिए कई लोग 100 के नोट भी अपने पास से हटाने लगे।

अखबार में नोटबंदी के सदमे के कारण लोगों के मरने की खबर भी प्रकाशित हुई। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के अनुसार कराची (तब भारत का अंग) में एक महिला की नोटबंदी के बाद सदमे से मौत हो गई। रिपोर्ट के अनुसार महिला के पास करीब एक लाख के बड़े नोट थे। वहीं सरकार द्वारा छापा मारकर बड़ा मात्रा में कालाधन रखने वालों को पकड़ने की खबरें आई थीं। सोने का भाव भी उस समय तेजी से बढ़ गया था। इसके अलावा सरकार को ये सफाई भी देनी पड़ी कि वो 100 के नोट बंद करने पर विचार नहीं कर रही है।

1946 में सरकार ने नोटबंदी से पहले एक कानून लाकर देश में प्रचलित सभी नोटों की संख्या सुनिश्चित की थी। (इंडियन एक्सप्रेस 1946)
सरकार ने कानून बनाकर 500, 1000 और 10,000 के नोट बंद कर दिए। इस फैसले को कालेधन पर कार्रवाई माना गया था। (इंडियन एक्सप्रेस 1946)
अखबार में खबर आई कि लोग 500, 1000 और 10,000 के नोटों को 60-70 प्रतिशत मूल्य पर बदलने की कोशिश कर रहे हैं। (इंडियन एक्सप्रेस 1946)
मुंबई में भारतीय रिजर्व बैंक के बाहर बड़े नोट बदलने के लिए लाइन लग गई। दिल्ली में एक करोड़पति पर मुकदमा दर्ज किया गया। (इंडियन एक्सप्रेस 1946)
दिल्ली में एक करोड़पति पर कालेधन के लिए मुकदमा दर्ज किया गया। (इंडियन एक्सप्रेस 1946)
अफवाह फैल गई कि जो लोग बैंक में 500, 1000 और 10,000 नोट बदलेंगे उन्हें उसके बदले कम पैसे मिलेंगे। सरकार ने इस खबर का खंडन किया। (इंडियन एक्सप्रेस 1946)
कांग्रेस नेता राजेंद्र प्रसाद ने नोटबंदी पर सवाल उठाए थे। उन्होंने इसकी वजह से आम जनता को हो रही दिक्कतों का मुद्दा भी उठाया था। प्रसाद बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति बने। (इंडियन एक्सप्रेस 1946)
1946 में प्रकाशित इस खबर के अनुसार एक सरकारी कर्मचारी ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में एक दिन में छह लाख रुपये से अधिक के बड़े नोट जमा किए थे। ये उस समय तक सबसे बड़ी राशि थी जो नोटबंदी के बाद सामने आई थी। (इंडियन एक्सप्रेस 1946)
1946 में प्रकाशित इंडियन एक्सप्रेस अखबार की खबर।
ये अफवाह फैल गई कि सरकार 100 रुपये का नोट भी बंद करने वाली है तो सरकार ने इसका खंडन किया। (इंडियन एक्सप्रेस 1946)

वीडियो: जानिए क्या है विमुद्रीकरण और क्यों लेती है सरकारें इसका फैसला-