अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने सोमवार को कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था कच्चे तेल की कीमतों और तेजी से ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वजह से धीमी हो जाएगी। अपने विश्व आर्थिक आउटलुक के ताजा अंक में उच्च घरेलू मांग पर कच्चे तेल की कीमतों के नकारात्मक प्रभावों का हवाला देते हुए और सख्त मौद्रिक नीति की वजह से आईएमएफ ने 2018-19 के लिए भारत के विकास अनुमान को 10 आधार अंकों से घटाकर 7.3% कर दिया। 2019-20 के लिए आईएमएफ ने अपने अनुमान को 30 आधार अंकों से घटाकर 7.5% कर दिया। हालांकि, भारत अब भी दुनिया के सबसे तेज विकास दर वाले अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।

29 जनवरी को पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 का अनुमान था कि तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि से आर्थिक विकास में 0.2-0.3 प्रतिशत की कमी आई है। थोक मुद्रास्फीति में 1.7 प्रतिशत अंक बढ़े हैं और चालू खाता घाटे में 9 से 10 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है। जब आईएमएफ ने जब अपना ताजा अंक जारी किया तब लीबिया और वेनेज़ुएला में वैश्विक आपूर्ति की कमी के भय से अप्रैल के बाद से कच्चे तेल की कीमतों में लगभग 5% की बढ़ोतरी हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच एक शिखर सम्मेलन से पहले सोमवार को कच्चे तेल की कीमतें 71 डॉलर प्रति बैरल से नीचे गिर गई। तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी होने की वजह से भारत जैसे आयातक देशों को नुकसान पहुंच रहा है।

बढ़ती मुद्रास्फीति से उच्च जोखिम का हवाला देते हुए 6 जून को भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने रेपो रेट 25 आधार अंकों से बढ़ाकर 6.25% कर दी है। यह चार साल से अधिक समय के बाद पहली वृद्वि हुई है। जून में खुदरा मुद्रास्फीति 5% और थोक मूल्य मुद्रास्फीति 5.77% पर बढ़ने के साथ, विश्लेषकों ने अगले महीने अपनी नीति समीक्षा में 1 अगस्त को दरों में वृद्धि से इंकार नहीं किया है। आईएमएफ ने कहा कि 2017-18 में भारत की वृद्धि 6.7% से बढ़कर 2018-19 में 7.3% और 201 9-20 में 7.5% की वृद्धि होने की उम्मीद है, क्योंकि नोटबंदी का प्रभाव खत्म हो जाएगा। साथ ही जीएसटी की वजह से जो शुरूआती समस्याएं उत्पन्न हुई है, वह भी खत्म हो जाएगी।