महानगरों में सरकारी भूखंडों पर अवैध कब्जे की प्रवृत्ति पुरानी है। गांवों से शहरों की तरफ पलायन बढ़ने से रोजी-रोजगार की तलाश में आए लोग सिर छिपाने के लिए तो कच्ची बस्तियां बसा ही लेते हैं, बहुत सारे शातिर लोगों ने भी इसे धंधा बना लिया है। राजनीतिक दल अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश में भी ऐसी अवैध कब्जे वाली कालोनियों को नियमित करने का आश्वासन देते रहते हैं। बकायदा इसके लिए कई बार नियम बनाए जा चुके हैं। मगर अवैध कब्जे की इस प्रवृत्ति के चलते शहरी विकास की मुश्किलें दिन पर दिन बढ़ती गई हैं। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारों से कोई व्यावहारिक रास्ता निकालने को कहा है। बता रहे हैं जयप्रकाश त्रिपाठी।

अवैध कालोनियों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के केंद्र सरकार से जवाब तलब से एक बार फिर उम्मीद जगी है। यह चिंता अकेले सुप्रीम कोर्ट की नहीं है। बहरहाल, उम्मीद यह भी है कि केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ‘न्यायमित्र’ की पहलकदमी इस मसले को किसी ठोस समाधान तक ले जाए। हालांकि यह आसान नहीं होगा। हर शहर में बसी नाजायज बस्तियों की सफाई में उन्हीं से मदद की दरकार है, जिनकी आंखों के सामने ये दैत्याकार हुई हैं।

अब सबसे बड़ा सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट जिन अवैध बसावटों को शहरी विकास में बाधक मानता है, क्या उनकी (रीयल एस्टेट माफिया) मर्जी के बिना भी कहीं कुछ संभव है, जो ऐसी कालोनियों के कर्मकांड में मुख्य किरदार रहते हैं; जो राजनीति में हैं, शासन-प्रशासन में हैं, भांति-भांति के संगठनों की छतरी लगा कर कालर उचकाते दिखते हैं। किसे पता नहीं कि पूरे देश में हर फुटपाथ की प्रत्येक रेहड़ी तक, थानों-निकायों की भेंट-पूजा के बाद ही सलामत रहती है, कालोनियां बस जाना तो बहुत बड़ी बात हो गई। अगर देश के हर नागरिक की न्यूनतम जरूरत ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ है, तो राज्य की विफलताओं में शुमार बसावटों के इस पेंच में कहीं बहुत गहरे बेतहाशा आबादी, भारी बेरोजगारी, गांवों से व्यापक विस्थापन आदि की असाध्य-असमाधेय चुनौतियां भी उलझी हुई हैं।

सुप्रीम कोर्ट का सुझाव है कि ‘इन कालोनियों का पंजीकरण बंद कर दिया जाए, ताकि लोग मालिकाना हक का दावा न कर सकें।’ तो सवाल है कि अपने ही देश के करोड़ों नागरिकों के लिए, बिना अपेक्षित राहत और पुनर्वास के, ऐसा कोई कदम क्या न्यायोचित होगा? कदापि नहीं। इसीलिए सर्वोच्च पीठ के आदेश में ‘अवैध’ कालोनी वासियों के साथ किसी भी तरह की दंडात्मक या जबरन कार्रवाई पर सख्त मनाही की ताकीद की गई है। प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि वर्ष 1990 में भी सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा था कि जानवरों और इंसानों की रिहाइशों में फर्क होना चाहिए।

राह के रोड़े

देश के व्यवस्थित शहरी विकास की राह में अवैध बसावटों से पहला स्थायी बड़ा खतरा वे हैं, जिनके साए में कालोनियों, अवैध निर्माणों, जम़ीनें हथियाने का कारोबार फूल-फल रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें कैसे इस दिशा में न्यायपालिका की मंशा पूरी होने में मददगार बनती हैं। वे इस मामले से संबंधित सारे रिकार्ड न्यायमित्र को सौंप पाती हैं या नहीं।

फिलहाल, मार्च 2021 को याद करिए, जब दिल्ली की अवैध कालोनियों के बाशिंदों के लिए लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) द्वितीय (संशोधन) विधेयक 2021 पारित होने के दौरान केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा था कि विधेयक का उद्देश्य दिल्ली के नागरिकों को राहत देना है, जो पिछली सरकारों द्वारा इस मुद्दे पर कई सालों से उपेक्षित थे। अब वे अपने मकान, दुकान या प्लाट की रजिस्ट्री करा सकेंगे, अपनी संपत्तियों पर बैंक से कर्ज ले सकेंगे। उससे पहले 2011 का अधिनियम 31 दिसंबर, 2020 तक वैध था।

संशोधित अध्यादेश में अवगत कराया गया था कि अनधिकृत कालोनियों को दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (अनधिकृत कालोनियों में निवासियों के संपत्ति अधिकारों को मान्यता) अधिनियम, 2019 और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (अनधिकृत कालोनियों में निवासियों के संपत्ति अधिकारों की मान्यता विनियम, 2019) के अनुसार नियमितीकरण के लिए पहचाना जाएगा। इसलिए 1 जून, 2014 को अस्तित्व में मौजूद और 1 जनवरी, 2015 तक पचास प्रतिशत विकास वाली अनधिकृत कालोनियों के नियमितीकरण के लिए पात्र होने की बात कही गई थी।

इसी तरह नवंबर, 2019 को दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली की अवैध कालोनियों को नियमित करने की मंजूरी दी थी। ‘प्रधानमंत्री अवैध कालोनी आवास अधिकार योजना’ के तहत मंजूरी दी गई थी। दिल्ली के उपराज्यपाल ने तब अवैध कालोनियों के मामलों में दिल्ली भूमि सुधार अधिनियम के मामलों को वापस लेने का भी निर्देश दिया था। इसके अलावा राजधानी के उन्यासी गांवों के शहरीकरण को भी मंजूरी मिल गई थी। उससे पहले अक्तूबर में केंद्र सरकार ने दिल्ली की 1797 अवैध कालोनियों को नियमित करने का फैसला किया था।

दिल्ली की इन अवैध कालोनियों में करीब चालीस लाख लोग रहते हैं। अब उन चालीस लाख लोगों तक जाकर ही जाना जा सकता है कि सरकारों के फरमान किस तरह, कितना परवान चढ़े हैं। यानी अवैध कालोनियां कितनी वैधता और विकास हासिल कर पाई हैं। दिल्ली की 1797 अवैध कालोनियों में सैनिक फार्म, छतरपुर, वसंत कुंज, सैदुलाजाब जैसे उनहत्तर ऐसे इलाके भी हैं, जो अवैध हैं, जहां अच्छी-खासी रसूखदार और अमीर लोगों की आबादी रहती है।

अवैध कालोनियों के भयावह विस्तार ने महानगरों की बुरी गत कर रखी है। हर बारिश के मौसम में देहरादून, दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता, पटना, हैदराबाद, केरल में जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने से भारी जलभराव या बाढ़ के पानी में लोग तैरने लगते हैं। भूमिगत सीवर जलभराव की सबसे बड़ी वजह बन जाते हैं, जो पालीथिन, घर से निकलने वाले रसायन और नष्ट न होने वाले कचरे से भरे पड़े रहते हैं। सीवरों और नालों की सफाई भ्रष्टाचार का जरिया बनी हुई है।

राजधानी में अवैध कालोनियों के विस्तार का हाल यह है कि हर साल दिल्ली ही नहीं, पूरा देश देखता है कि किस तरह यमुना के उफान के बाद आईटीओ, निजामुद्दीन, सरिता विहार और लोहे के पुल पर तमाशबीनों की भीड़ जुट जाती है। यमुना में तो पहले भी भयंकर बाढ़ आती थी, लेकिन तब क्यों नहीं रिहायशी इलाकों में पानी घुसता था। यमुना के पाट तक पर माफिया कब्जा कर चुके हैं।

वही शहरी अवैध कालोनियों के असली नियंता बने हुए हैं। क्या ऐसी अवैध कालोनियों को बसने से रोकने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं होती है? यमुना के कछार में सिर्फ अवैध कालोनियां नहीं बसी हैं, कई ऐसे काम भी हो रहे हैं, जो सीधे तौर पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं और यमुना एक बड़े नाबदान में तब्दील होती जा रही है। अरबों रुपए सरकारी खजाने से डुबो कर यमुना की सफाई पर लंबे समय से राजनीति हो रही है, सो अलग।

उधर, हिंडन नदी के डूब तक में भूमाफिया ने अवैध कालोनियां बिछा दी हैं। लोग वहां धड़ल्ले से मकान बना रहे हैं। वहां लगातार कट रही अवैध कालोनियों को हटाने और हिंडन को बचाने के लिए कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है! इस चुप्पी के मायने है, एक तरफ से पूरी सरकार, निकाय और प्रशासकों की एकजुट नीम खमोशी। हिंडन की छाती पर छह हजार से ज्यादा अवैध निर्माण हो चुके हैं।

आसपास की हरियाली तबाह हो चुकी है। खुलेआम पूरे क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर अवैध कब्जों का तांडव हो रहा है। खासकर, अकबरपुर-बहरामपुर और कनावनी गांव के आसपास हिंडन के डूब क्षेत्र में जमकर अवैध निर्माण हो रहे हैं। सरकार के कदम देखिए कि हिंडन के डूब क्षेत्र करहेड़ा में सरकारी बिजलीघर बना दिया गया है। इस माफिया राज पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण की एतराज वाली चिट्ठियां भी कोई मायने नहीं रखतीं।