नए सत्र में दाखिला लेने वाले छात्रों के साथ परिचय और मिलने-जुलने के नाम पर वरिष्ठ छात्रों की बदसलूकी यानी ‘रैगिंग’ रोकने के लिए कड़े कानून बनाए गए। शिक्षण संस्थानों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि उनमें रैगिंग न होने पाए, इससे संबंधित प्रतिज्ञा भी संस्थान परिसर में लगाते हैं। विद्यार्थियों से इससे संबंधित वचन-पत्र भरवाए जाते हैं।
इसके बावजूद रैगिंग का रोग खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। ताजा मामला हिमाचल प्रदेश के मंडी में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आइआइटी का है। पिछले महीने वहां के वरिष्ठ छात्रों ने नए आए छात्रों को बंद कमरे में देर तक मुर्गा बना कर रखा। इसके चलते कई छात्र दहशत में आ गए। छात्रों का कहना था कि ऐसा उन्होंने नए छात्रों के साथ मेलजोल बढ़ाने के लिए किया था।
इस घटना की सूचना जब आइआइटी प्रबंधन को मिली तो उसने खबर को दबाए रखा और अपने स्तर पर गहन जांच कराई। अब करीब पचहत्तर छात्रों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है। कुछ को छह महीने के लिए संस्थान से बाहर कर दिया गया है, तो कइयों पर पंद्रह-पंद्रह हजार रुपए जुर्माना लगाया गया है। निस्संदेह आइआइटी मंडी के प्रबंधन के इस कदम से संबंधित छात्रों को अपनी गलती का अहसास हुआ होगा और दूसरे संस्थानों के छात्रों को भी इससे सबक मिलेगा।
दरअसल, कुछ साल पहले तक शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग का चलन आतंक का पर्याय बन चुका था। यह रिवायत-सी बन गई थी कि पुराने छात्र नए छात्रों से परिचय के नाम पर उन्हें प्रताड़ित किया करते थे, उनसे अशोभन हरकतें कराते, उनके साथ अभद्र भाषा में बात करते थे। तमाम शैक्षणिक संस्थान भी इसे एक आम चलन की तरह स्वीकार कर लेते थे। मगर इसके चलते बहुत सारे कोमल मन के विद्यार्थी दहशत से भर उठते थे।
अनेक छात्रों ने रैगिंग के चलते खुदकुशी तक कर ली। जब यह सिलसिला बढ़ता गया तब अदालतों को संज्ञान लेना पड़ा और सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती के बाद शैक्षणिक संस्थानों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ। रैगिंग करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाने लगी। फिर भी छात्रावासों में ऐसी गतिविधियां चोरी-छिपे चलती रहीं। दरअसल, पुराने छात्रों ने रैगिंग को एक तरह से अपने मनोरंजन और अपनी कुंठा निकालने का माध्यम बना लिया था। इस पर कठोरता से रोक लगाने के प्रयासों से काफी हद तक ऐसी गतिविधियां रुकी हैं। मगर आइआइटी मंडी की घटना से जाहिर है कि यह पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि शैक्षणिक संस्थानों में नए-नए आए विद्यार्थियों का अपने वरिष्ठ विद्यार्थियों के साथ मेलजोल बढ़ना चाहिए। इससे पठन-पाठन का बेहतर वातावरण बनता है, कनिष्ठ विद्यार्थियों को वरिष्ठ विद्यार्थियों से काफी सहयोग मिल जाता है। मगर मेलजोल बढ़ाने का यह अर्थ कतई नहीं होता कि नए विद्यार्थियों को प्रताड़ित किया जाए, उन्हें अपमानित और उनके साथ अशोभन हरकतें की जाएं।
उनका आत्मविश्वास और आत्मसम्मान इस कदर तोड़ दिया जाए कि वे कुंठित रहने लगें या फिर खुदकुशी तक कर लें। उनसे स्नेहिल व्यवहार के जरिए मेलजोल बढ़ाना अधिक टिकाऊ हो सकता है। वरिष्ठ होने का अर्थ अपने कनिष्ठ के प्रति सुरक्षात्मक और सहयोगी होना होता है, न कि उसे प्रताड़ित करना। यह भाव विद्यार्थियों में पैदा करने की जिम्मेदारी शैक्षणिक संस्थानों की है। रैगिंग की घटनाएं खासकर तकनीकी संस्थानों में अधिक देखी जाती रही हैं। उन संस्थानों से सतर्कता की अपेक्षा की जाती है।