इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर के एस वेंकटेश ने छात्रों और संकाय के सदस्यों से अपील की है कि वे लोकतंत्र की खातिर जूझ रहे साथियों का साथ दें। वेंकटेश करीब दो दशक में एक हजार से ज्यादा बार लेक्चर दे चुके हैं ।
आईआईटी कानपुर के ओल्ड कन्वोकेशन ग्राउंड में पिछले महीने 5 जनवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों पर हुए हमले और अन्य जगहों पर सीएए के खिलाफ आवाज उठा रहे लोगों के प्रति एकजुटता व्यक्त करने के लिए लगभग 200 छात्र और 25 से अधिक शिक्षक बैठक में शामिल हुए थे।
बैठक में शामिल लोग भारत भर के 80 से अधिक विज्ञान संस्थानों के फैकल्टी, स्कॉलर्स और छात्रों में से हैं जिन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ अभियान चलाने के लिए पिछले एक महीने में याचिकाओं पर हस्ताक्षर किए, मार्च आयोजित किए और सिट-इन का मंचन किया।
टेलिग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, वेंकटेश ने बैठक में कहा, “हमारे लोकतंत्र की रक्षा करने वाले लोग जेएनयू के लोग हैं। वे हमारे बदले हमले झेल रहे हैं। हम यहां आराम से बैठे हैं। देखिए कि जेएनयू में और दूसरी जगहों पर लोग क्या बातें कर रहे हैं।” आईआईटी बॉम्बे, आईआईटी धारवाड़, कोलकाता, पुणे, मोहाली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सायंस एजुकेशन एंड रिसर्च, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च मुंबई जैसे संस्थानों के फैकल्टी मेंबर को मौखिक या ईमेल के माध्यम से कहा गया है कि वे इस मुद्दे (सीएए) के खिलाफ असंतोष व्यक्त करना बंद करें।
कई वैज्ञानिकों ने कहा कि विरोध को दबाने के ऐसे प्रयास सरकार की असहिष्णुता को दिखाते हैं। लेकिन कई अन्य ने तर्क दिया कि जिस तरह से समर्थन मिल रहा है, वह कुछ मुद्दों पर अक्सर अप्रासंगिक होता है। आईआईटी-बॉम्बे में केमिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर अभिजीत मजूमदार कहते हैं, “सही या गलत का निर्धारण कभी भी बहुमत के मत से नहीं किया जाता है। पूरे इतिहास में, विज्ञान और विज्ञान के बाहर इस बात पर भ्रम फैलता है।”
शिक्षकों के एक समूह का मानना है कि यदि वे विरोध-प्रदर्शन से दूर रहने के आदेश की अवहेलना करते हैं तो उनके करियर पर खतरा हो सकता है। लेकिन कई लोग इस बात से भी चिंतित हैं कि शैक्षणिक संस्थानों में असंतोष फैलाने के प्रयासों का असर लंबे समय तक दिख सकता है।