देशभर में इस मुद्दे पर डिबेट होती है कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी में सामान्य वर्ग के छात्रों की संख्या अधिक है। हालांकि अब ऐसा नहीं है। आईआईएम उदयपुर की एक रिपोर्ट के अनुसार अब उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षित वर्ग के छात्रों की संख्या सामान्य वर्ग के छात्रों से अधिक हो गई है। एकेडमिक रिसर्च प्लेटफॉर्म CasteFiles की एक प्रेस रिलीज़ के अनुसार IIM उदयपुर की एक टीम की रिसर्च में पाया गया है कि शेड्यूल्ड कास्ट (SC), शेड्यूल्ड ट्राइब्स (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के छात्रों की संख्या उच्च शिक्षा में जनरल कैटेगरी के छात्रों के एनरोलमेंट से ज़्यादा है।

IIM उदयपुर की रिसर्च टीम ने क्या कहा?

प्रेस रिलीज़ के मुताबिक शिक्षा मंत्रालय (MoE) द्वारा सालाना ऑल-इंडिया सर्वे ऑफ़ हायर एजुकेशन (AISHE) रिपोर्ट पब्लिश करना शुरू करने के 15 साल बाद IIM उदयपुर की एक रिसर्च टीम ने भारतीय उच्च शिक्षा में जाति के आधार पर भागीदारी पर अब तक की सबसे विस्तृत स्टडी में से एक करने के लिए छात्र एनरोलमेंट ट्रेंड्स का एनालिसिस किया है। IIM उदयपुर में क्वांटिटेटिव मेथड्स और इन्फॉर्मेशन सिस्टम्स के फैकल्टी वेंकटरमनन कृष्णमूर्ति; IT स्पेशलिस्ट और डेटा रिसर्च एनालिस्ट थियागराजन जयरामन; और IIM उदयपुर में ऑर्गनाइज़ेशनल बिहेवियर और ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट के प्रोफेसर दीना बनर्जी के नेतृत्व में सेंटर फॉर डेवलपमेंट पॉलिसी एंड मैनेजमेंट (CDPM) की टीम ने 13 साल के जनगणना-स्तर के AISHE डेटा (2010-11 से 2022-23) का एक बड़ा अध्ययन किया। इसमें 60,380 उच्च शिक्षा संस्थान और 43.8 मिलियन छात्र शामिल थे।

रिसर्च के निष्कर्ष बहुत ही पॉजिटिव हैं और पश्चिमी एकेडमिया, NGO और एक्टिविस्ट नेटवर्क के कुछ हिस्सों द्वारा अक्सर फैलाई जाने वाली बातों से बिल्कुल अलग हैं। प्रोफेसर वेंकटरमनन कहते हैं, “यह रिपोर्ट भारतीय उच्च शिक्षा में छात्रों की सामाजिक बनावट के बारे में कई आम गलतफहमियों को तोड़ती है। प्रचलित धारणा के विपरीत, शेड्यूल्ड कास्ट (SC), शेड्यूल्ड ट्राइब्स (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के छात्र एनरोलमेंट में बहुत ज़्यादा हैं और जनरल कैटेगरी के छात्रों से काफी ज़्यादा हैं।”

‘मोदी सरकार की जाति जनगणना बहुजनों के साथ खुला विश्वासघात’, राहुल गांधी बोले- मेरे सवाल का जवाब चौंकाने वाला

प्रोफेशनल और टेक्निकल फील्ड में क्या स्थिति?

यह ट्रेंड सभी प्रकार के संस्थानों और विषयों में दिखाई देता है, जिसमें प्रोफेशनल और टेक्निकल फील्ड भी शामिल हैं। उच्च शिक्षा में SC/ST/OBC छात्रों का कुल हिस्सा 2010-11 में 43.1 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 60.8 प्रतिशत हो गया, जो भारत में सीखने वालों की सामाजिक बनावट में एक बड़ा बदलाव दिखाता है। प्रेस रिलीज में कहा गया है कि अकेले 2023 में SC/ST/OBC का एनरोलमेंट जनरल कैटेगरी के मुकाबले 9.5 मिलियन छात्रों से ज़्यादा था। साफ शब्दों में कहें तो जनरल कैटेगरी का हिस्सा 2011 में 57 परसेंट से घटकर 2023 में लगभग 39 परसेंट हो गया। इसमें इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन (EWS) कोटे के स्टूडेंट्स भी शामिल हैं। इसलिए यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि जनरल कैटेगरी के कई स्टूडेंट्स हायर एजुकेशन और नौकरी के मौकों के लिए विदेश जाते हैं, लेकिन उन्हें अक्सर पश्चिमी देशों में भी जाति के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

अमेरिकी समाजशास्त्री साल्वाटोर बैबोन्स जिन्होंने अमेरिका में जाति के हथियार के रूप में इस्तेमाल पर एक व्हाइट पेपर लिखा है, उन्होंने AISHE के नतीजों का स्वागत करते हुए कहा, “यह पेपर जाति कैटेगरी के हिसाब से हायर एजुकेशन तक पहुंच के डेटा को सामने रखता है। भारत में जाति आरक्षण पर बहस में शामिल सभी लोगों को इसे पढ़ना चाहिए।”

CasteFiles ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से सदियों के औपनिवेशिक शोषण ने भारत के बड़े हिस्से को गरीब बना दिया। आज़ाद भारत में इस असमानता को दूर करने के लिए आरक्षित कोटा एक अस्थायी सुधार तंत्र के रूप में सोचा गया था। हालांकि, आरक्षण की कड़ी संरचना ने एक बढ़ती हुई क्रीमी लेयर” को जन्म दिया है जो अक्सर उसी कैटेगरी के ज़्यादा ज़रूरतमंद लोगों के मौकों को छीन लेती है। भारत के पूर्व चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने SC और ST कैटेगरी पर क्रीमी-लेयर सिद्धांत लागू करने की ज़रूरत पर बार-बार ज़ोर दिया है। उन्होंने कहा था, “अगर फायदे बार-बार एक ही परिवारों को मिलते हैं, तो एक क्लास के अंदर एक और क्लास बन जाती है। आरक्षण उन लोगों तक पहुंचना चाहिए जिन्हें सच में इसकी ज़रूरत है।”

लेखकों में से एक थियागराजन भी कहते हैं, “AISHE डेटा से पता चलता है कि हायर एजुकेशन में SC, ST, OBC स्टूडेंट्स के लिए मौकों की कमी अब कोई मुद्दा नहीं है। यह औसत से ज़्यादा है। अब फोकस इस बात पर होना चाहिए कि उनके बीच की क्रीमी लेयर निचले तबके के लोगों के मौके न छीन ले।” SC/STs के लिए क्रीमी लेयर की अभी कोई ऑफिशियल परिभाषा नहीं है। हालांकि OBC के लिए इसे परिभाषित किया गया है, लेकिन मानदंड आरक्षण के फायदों में हेरफेर के लिए काफी गुंजाइश छोड़ते हैं। इसलिए पूर्व CJI गवई ने पॉलिसी बनाने वालों से ‘क्रीमी लेयर’ की औपचारिक रूप से पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के फायदों से बाहर रखने का आग्रह किया है।