कूनो नेशनल पार्क में एक के बाद एक करके हो रही चीतों की मौतों पर प्रोजेक्ट चीता में शामिल अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत में बसाने के लिए कम उम्र के ऐसे चीतों का चयन चाहिए जो मानव की उपस्थिति के आदी हो। विशेषज्ञों ने चीतों को फिर से बसाने के लिए कूनो के स्थान पर अन्य स्थलों की पहचान करने की सलाह दी। कूनो में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से दो ग्रुपों में चीते लाए गए हैं।
सरकार को सौंपी गई एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने कहा कि कम उम्र के चीते नए माहौल में आसानी से ढल जाते हैं। अधिक उम्र के चीतों की तुलना में उनके जीवित रहने की दर भी अधिक होती है। कम उम्र के नर चीते अन्य चीतों को लेकर अपेक्षाकृत कम आक्रामक व्यवहार दिखाते हैं, जिससे चीतों की आपसी लड़ाई में होने वाली मौत का खतरा कम हो जाता है। उन्होंने कहा कि कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत की दर दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके कारण मीडिया में कई नकारात्मक समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित हुए हैं, लेकिन यह मौत की तादाद कोई गहरी चिंता का विषय नहीं है।
कूनो नेशनल पार्क में लाए गए थे 20 चीते
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में मार्च के बाद से नौ चीतों की मौत हो चुकी है। इनमें छह वयस्क व तीन शावक शामिल हैं। प्रोजेक्ट चीता के तहत कुल 20 चीतों को दो दलों में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कूनो में लाया गया था। चार शावकों के जन्म के बाद चीतों की कुल संख्या 24 हो गई थी। लेकिन नौ चीतों की मौत के बाद यह संख्या घटकर अब 15 रह गई है।
शुरुआत में चीतों को अफ्रीका में बसाने में भी हुई थी दिक्कत
विशेषज्ञों ने दक्षिण अफ्रीका में चीतों को बसाने की कोशिश के दौरान शुरुआत में हुई दिक्कतों पर कहा कि तब 10 में से नौ कोशिश असफल हो गई थीं। रिपोर्ट में सुपरमॉम के महत्व को भी रेखांकित किया गया है। सुपरमॉम दक्षिण अफ्रीका से लाई गईं ऐसी मादा चीतों को कहा जाता है, जो अधिक स्वस्थ और प्रजनन क्षमता के लिहाज से बेहतर होती हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में लाए गए चीतों में से सात मादा हैं और उनमें से केवल एक के ‘सुपरमॉम’ होने की उम्मीद है।
