सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने यहां कहा कि केन्द्र को यह समझना चाहिए कि अगर अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस करेंगे तो भारत कमजोर होगा तथा विभाजनकारी बल मजबूत होंगे। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान के दौरान आरोप लगाया, ‘‘हम फासीवादी बलों द्वारा देश के संविधान और समाज के सबसे पिछड़े एवं सबसे असुरक्षित वर्गों के हितों को सुरक्षा प्रदान करने वाली पूरी सामाजिक न्याय प्रणाली को नीचा दिखाने का बहुत दमदार प्रयास होते देख रहे हैं।’’
भाजपा नेताओं पर सांप्रदायिक शब्दावली का प्रयोग करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार को जानना चाहिए कि सामाजिक न्याय के बगैर कोई लोकतंत्र नहीं होता है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों को भी कुछ संयम के साथ काम लेना चाहिए।
तीस्ता ने कहा, ‘‘मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि सांप्रदायिक बलों के कदमों और घृणा फैलाने वाले भाषणों से उकसावे में नहीं आएं… बल्कि हिन्दुओं और समाज के सभी वर्गों के साथ समझ का सेतु बनाने में अपनी उर्जा लगाएं… घृणा की बातों को खत्म करने का यही एकमात्र तरीका है।’’
वह एएमयू द्वारा शुक्रवार शाम आयोजित कार्यक्रम में ‘भारत के संविधान की प्रस्तावना एवं संवैधानिक सरकार के सामने समानता की चुनौती’ विषय पर बोल रही थीं। मुख्य संबोधन में इतिहासकार प्रोफेसर ई इरफान हबीब ने कहा कि आशा के कारण हैं क्योंकि भारत की सिविल सोसायटी ने हाल के समय में ‘‘अपनी चिंताएं दर्ज कराके अभूतपूर्व साहस दिखाया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘याद रखिए कि जो लोग आपके बचाव में आवाज उठा रहे हैं वे हिन्दू हैं और अगर आप उनके हाथ मजबूत करना चाहते हैं तो आपके हाथ भी साफ होने चाहिएं।’’
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