वायनाड में भारी बारिश जारी है। अब तक 270 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और बड़ी संख्या लापता लोगों की है। सबसे ज़्यादा प्रभावित चूरलमाला और मुन्दक्कई क्षेत्र रहे हैं। पहाड़ों से सजे इस क्षेत्र को पर्यटन के लिए जाना जाता है, यहां के घने जंगल नीलांबुर के जंगलों से जुड़ते हैं। बड़ी तादाद में यहां बागान मजदूर रहते हैं। लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि गांवों तक पहुंचने के रास्ते तक बर्बाद हो गए हैं। हर तरफ सिर्फ बचाव की उम्मीद बची है।
सवाल यह है कि आखिर इतनी खतरनाक आपदा के कारण क्या रहे हैं? क्यों एक 13 साल पुरानी रिपोर्ट (Madhav Gadgil-Panel Report) का ज़िक्र हो रहा है, जिसमे इस इलाके को एक पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र बताया गया था।
माधव गाडगिल ने दी थी चेतावनी
इकोलोजिस्ट माधव गाडगिल ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर इस इलाके में भूस्खलन हुआ तो यह नक्शे से मिट सकता है। 11 साल पहले वह अपनी एक रिपोर्ट के ज़रिए कह चुके थे कि यह क्षेत्र अत्यधिक संवेदनशील है, सरकारों को इसपर नज़र रखनी चाहिए।
अब जब यह हादसा हुआ तो चूरलमाला के कई रिहाइशी लोगों को गाडगिल की भविष्यवाणी याद आई। गाडगिल ने 2019 में चेतावनी दी थी कि पश्चिमी घाट बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और अगर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो केरल को चार से पांच साल के भीतर बड़ी आपदा का सामना करना पड़ सकता है।
अवैध निर्माण, खनन : सरकार ने ध्यान क्यों नहीं दिया?
वायनाड के इस इलाके में अंधाधुंध खनन और निर्माण गतिविधियों ने हालात बदतर बना दिए और नतीजा हमारे सामने है। माधव गाडगिल की अध्यक्षता पैनल ने अगस्त 2011 में केंद्र को सौंपी अपनी रिपोर्ट में मेप्पाडी में पर्यावरण विरोधी गतिविधियों के खिलाफ विशेष रूप से चेतावनी दी थी, जहां एक बड़े भूस्खलन ने एक पूरे गांव को खत्म कर दिया था। माधव गाडगिल की रिपोर्ट को नजरअंदाज़ किया गया, यह एक उदाहरण है। लेकिन सवाल केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों पर उठता है कि इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया गया?