देश में तमाम महापुरुषों की जयंती और उनसे संबंधित कार्यक्रमों में काफी हद तक फेरबदल देखी जा रही है। खबर है कि मौलाना अबुल कलाम आजाद की जन्मतिथि के दिन विनायक दामोदर सावरकर पर कॉन्फ्रेंस आयोजित कराने की योजना है। वहीं, दलित चिंतक तथा संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर की जयंती को भी समरसता दिवस मनाने की कवायद चल रही है। ‘द टेलिग्राफ’ की रिपोर्ट के मुताबिक देश के प्रथम शिक्षा मंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी डॉक्टर अबुल कलाम आजाद जयंती पर केंद्र सरकार और ICHR (Indian Council of Historical Research) सावरकर को याद करने की तैयारी में है।

11 नवंबर को मौलाना अबुल कलाम की जयंती है और इस दिन को पिछले 12 सालों से ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। लेकिन, इस बार ICHR इस दिन पर कॉन्फ्रेंस का आयोजन करने जा रहा है, जिसका टॉपिक है; “वीर (विनायक) दामोदर सावरकर: लाइफ एंड मिशन”। गौरतलब है कि मौलाना अबुल कलाम आजाद की हैसियत ताउम्र एक सम्मानित राजनेता और स्कॉलर की रही। बतौर स्वतंत्रता सेनानी उन्होंने कई आंदोलनों में हिस्सा लिया था। खास तौर पर उन्होंने धर्म के आधार पर देश के बंटवारे की भी मुखालफत की थी। उनका एक ही भारत रहने पर बल दिया था, जिसमें हिंदू और मुसलमान भाईचारे के साथ रहें। 1992 में आजाद को मरणोपरांत देश के सर्वश्रेष्ठ सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। हालांकि, दूसरी तरफ अब सावरकर को भी भारत रत्न देने की मांग उठाई जा रही है।

संघ परिवार शुरुआत से ही सावरकर की विचारधारा का अनुसरण करता रहा है। दरअसल, सावरकर जिस हिंदुत्व के दर्शन की वकालत करते थे, आज आरएसएस उसी के प्रसार में जुटा है। ऐसे में संघ से जुड़े लोग और तमाम संस्थाएं सावरकर का गुणगान हर मौके पर करती रही हैं। हालांकि, ICHR के हालिया फैसले पर सवाल भी उठने शुरू हो गए हैं। द टेलिग्राफ के मुताबिक ‘ऑल इंडिया अंबेडकर महासभा’ के चेयरपर्सन अशोक भारती ने आरोप लगाया कि ICHR अपने फैसले के जरिए आरएसएस की विचारधारा और हिंदुत्व के आइकॉन को प्रमोट कर रही है।

गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने हस्तियों के नाम से जुड़े कई कार्यक्रमों के नाम बदल दिए हैं। मसलन, 25 दिसंबर (क्रिसमस) को अब सरकार ‘गुड गवर्नेंस डे’ मना रही है। 31 अक्टूबर को सरकार वल्लभभाई पटेल की जयंती को ‘राष्ट्रीय संकल्प दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है। गौरतलब है कि इस दिन इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि भी है। द टेलिग्राफ की रिपोर्ट में बताया गया है कि अंबेडकर जयंती (14 अप्रैल) को समरसता दिवस मनाने की कवायद दो हफ्ते पहले ही शुरू हुई है।