25 साल पहले 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने इंटेलीजेंस ब्यूरो से आर्थिक सुधारों के विरोधी कांग्रेस सांसदों की रिपोर्ट मांगी थी। आईबी की ओर से दी गई लिस्ट में लोकसभा और राज्य सभा के उन सभी सांसदों के नाम थे जो बिल के विरोध में थे। राव सरकार ने चार तरह के आर्थिक सुधार किए थे। ये थे: उद्योगों से पाबंदी हटाना, व्यापार और वाणिज्य में उदारता, बहुराष्ट्रीय कंपनियों व विदेशी निवेश का उदार प्रवेश, पब्लिक सेक्टर का निजीकरण और खाद सब्सिडी में कमी और कृषि नीति।
आईबी की रिपोर्ट के अनुसार 55 सांसद व्यापार और वाणिज्य में उदारता के विरोध में थे। इनमें माधवराव सिंधिया और बलराम जाखड़ जैसे सात मंत्री भी शामिल थे। केके बिड़ला समेत छह कांग्रेस सांसदों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश का विरोध किया। पब्लिक सेक्टर कंपनियों के निजीकरण का 15 सांसदों ने विरोध किया। 20 सांसद जिनमें अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह भी शामिल थे, ने इन सुधारों पर भाजपा-कांग्रेस की सहमति का विरोध किया। विनय सीतापति की जल्द ही जारी होने वाली किताब ‘हाफ लॉयन: हाऊ पीवी नरसिम्हा राव ट्रांसफॉमर्ड इंडिया’ में यह खुलासा हुआ है।
कांग्रेस सांसदों ने राव को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना था, न कि नामित हुए थे: बारू
किताब के अनुसार राव ने आईबी की जासूसी के अलावा भी कई अन्य उपायों के जरिए कांग्रेस में होने वाली साजिशों का सामना किया। कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में जब सांसदों ने आर्थिक सुधारों का विरोध किया तो राव मनमोहन सिंह के पीछे छुप गए। मनमोहन उस समय वित्त मंत्री थे और सारा विरोध उन्हें ही झेलना पड़ा। इस किताब में राव से पहले के चारों प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में सुधारों को लेकर बनाए गए ब्ल्यूप्रिंट की जानकारी भी दी गई। ये चारों सुधार करने में नाकाम रहे और इन्होंने अवसर गंवा दिया। राव को अपनी पार्टी के साथ ही विपक्ष का भी विरोध झेलना पड़ा। आज नए आर्थिक सुधारों की पैरवी करने वाली भाजपा उस समय कई सुधारों के खिलाफ थी।