कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के मोदी सरकार के फैसले का भाजपा और सरकार के चेहरे पर नुकसान होता नहीं दिख रहा है। आईएएनएस-सी वोटर स्नैप ओपेनियन पोल में ये बातें कही गई है।

पीएम मोदी ने 19 नवंबर को तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी। इसके बाद से तमाम तरह की अटकलें लगाईं जा रही थीं कि सरकार के इस फैसले से भाजपा या पीएम मोदी के चेहरे को कितना नुकसान होगा या फायदा होगा? अब इसी को लेकर किए गए एक सर्वे में 52 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि पीएम ने सही फैसला लिया है। यह सर्वे कानून को रद्द करने की घोषणा के कुछ ही घंटों के अंदर किया गया है।

सर्वे के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक लोगों का दावा है कि कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद है। हालांकि, 30.6 फीसदी ने दावा किया है कि ये कानून किसानों के लाभ के लिए नहीं थे। 40.7 फीसदी लोगों ने कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए सरकार को, 22.4 फीसदी ने विपक्ष को और 37 फीसदी ने प्रदर्शनकारियों को श्रेय दिया है।

पीएम मोदी के किसानों के प्रति रवैये को लेकर भी इस सर्वे में लोगों से सवाल पूछे गए थे। सर्व में 58.6 प्रतिशत नागरिकों ने कहा है कि पीएम मोदी वास्तव में किसानों के समर्थक हैं। वहीं, 29 फीसदी नागरिकों ने कहा कि वो किसान विरोधी हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 50 प्रतिशत से अधिक विपक्षी मतदाता मोदी को किसान समर्थक मानते हैं।

सर्वे के अनुसार जब अंत में किसान आंदोलन के पीछे के वास्तविक उद्देश्यों के बारे में पूछा गया तो 56.7 फीसदी लोगों ने कहा कि आंदोलन मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को कमजोर करने के लिए था। जनता ने कहा कि योजना राजनीति से प्रेरित थी। वहीं 35% लोगों ने इस दावे को नकार दिया।

बता दें कि इन कानूनों के विरोध में किसान लगभग एक साल से आंदोलन कर रहे हैं। इस आंदोलन के दौरान सैकड़ों किसानों की मौत भी हो चुकी है। कानून वापस लेने के फैसले के बाद भी किसान प्रदर्शन खत्म करने के लिए तैयार नहीं है। किसानों का कहना है कि सरकार पहले इसे कानूनी तौर पर रद्द करे और एमएसपी समेत बाकी मुद्दों का भी हल निकाले।