Supreme Court Justice Surya Kant: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने गुरुवार को अपने जीवन से जुड़े कई पहलुओं का साझा किया। इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि जब वो वकील के तौर पर काम करते थे, तो उस वक्त वो किस तरह के वकील थे। जस्टिस कांत ने यह भी बताया कि दिवालियापन के क्षेत्र में मध्यस्थता किस प्रकार काम करती है।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जब वे वकील थे, तब उनका मध्यस्थता में विश्वास नहीं था, लेकिन जज बनने के अनुभव ने मुझे बदल दिया। उन्होंने कहा कि समय के साथ उन्हें यह अहसास हुआ कि विवादों के समाधान के लिए मध्यस्थता एक प्रभावी साधन है।

सूर्यकांत ने कहा कि मैं एक तेजतर्रार किस्म का वकील था। मध्यस्थता मेरे बस की बात नहीं थी। हाई कोर्ट के जज के रूप में मेरी पदोन्नति के बाद मुझे एहसास हुआ कि विवाद समाधान के लिए मध्यस्थता को एक विधि के रूप में खोजा जा सकता है। मुझे कहना होगा कि समय बीतने के साथ, मुझे एहसास हुआ कि मध्यस्थता एक प्रभावी उपकरण है। हाई कोर्ट के जज के रूप में उन्होंने अंततः यह सुनिश्चित किया कि सभी हितधारकों को मध्यस्थता में जरूरी ट्रेनिंग मिले।

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जस्टिस कांत ‘Mediation in Insolvency- A game changer in Viksit Bhrat’ नामक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। इस पुस्तक में वकीलों, अर्थशास्त्रियों और विषय विशेषज्ञों का योगदान शामिल है, जिसका संपादन सेवानिवृत्त जस्टिस ए.के. सीकरी और अधिवक्ता सुमंत बत्रा ने किया है। इस कार्यक्रम में दिल्ली हाई कोर्च के चीफ जस्टिस मनमोहन और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि भी उपस्थित थे।

अपने संबोधन में जस्टिस कांत ने यह भी बताया कि दिवालियापन के क्षेत्र में मध्यस्थता किस प्रकार काम कर सकती है। उन्होंने कहा कि जब दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत कोई मामला शुरू किया जाता है, तो वित्तीय ऋणदाता अपने द्वारा उधार दी गई राशि वसूलने के लिए बहुत उत्सुक होता है, कॉर्पोरेट देनदार व्यवसाय का पुनर्निर्माण करने के लिए उत्सुक होता है, शेयरधारक अपने हितों की रक्षा करना चाहते हैं और परिचालन देनदार भी अपने हितों की रक्षा करना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि इस तरह के माहौल से सभी हितधारकों में डर और आशंका की भावना पैदा होती है। यही वह आधार है जिस पर पक्षों को मध्यस्थता के लिए आमंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता कम्पनियों को महंगी और लम्बी मुकदमेबाजी से बचाने में काफी सहायक हो सकती है, तथा दुनिया भर में इसके कई उदाहरण हैं।

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