दो अप्रैल को हुए विमान हादसे में इंडियन एयरफोर्स के फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव (28) का निधन हो गया। उनके निधन ने भारतीय वायुसेना द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे दशकों पुराने विमानों को लेकर बहस छेड़ दी है। साल 2001 में MiG-21 क्रैश में जान गंवाने वाले फ्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गाडगिल की मां ने फेसबुक के जरिए एयरफोर्स के विमान हादसों को लेकर अपनी बात रखी है। कविता गाडगिल ने फेसबुक पर पोस्ट किया, “मैं चाहती हूं कि आप याद रखें। गुस्सा करें। बेहतर की मांग करें। परवाह करने के लिए अगली दुर्घटना का इंतजार न करें।”

दिवंगत फ़्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गाडगिल की मां कविता गाडगिल ने लिखा, “इन लड़कों को फोटो खिंचवाने और देशभक्ति के हैशटैग तक सीमित न रखें।”

75 साल की कविता गाडगिल ने रविवार को फेसबुक पर पोस्ट किया, “भारत के प्रिय नागरिकों, एक और जवान चला गया। फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव। युद्ध में शहीद नहीं हुआ। लड़ाई में नहीं मारा गया। लेकिन 46 साल पुराने जगुआर जेट में खो गया, जिसे उसके जन्म से बहुत पहले ही जमीन पर उतार दिया जाना चाहिए था।”

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 उन्होंने कहा, “उनकी मृत्यु एक ऐसे विमान को उड़ाते हुए हुई जिसे दुनिया ने दशकों पहले ही रिटायर कर दिया था। एक ऐसा विमान जो मिग-21 की तरह आज भी हमारे आसमान में आतंक मचा रहा है और हमारे सबसे होनहार और बहादुर लोगों की जान ले रहा है, दुश्मन की कार्रवाई की वजह से नहीं, बल्कि हमारी अपनी उदासीनता के कारण।”

सितंबर 2001 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट गाडगिल का निधन

फ्लाइट लेफ्टिनेंट गाडगिल की मृत्यु 17 सितंबर, 2001 को राजस्थान के सूरतगढ़ में मिग-21 से जुड़ी एक हवाई दुर्घटना में हुई थी। पुणे में रहने वाले गाडगिल ने लिखा, “मेरे बेटे, फ्लाइट लेफ्टिनेंट अभिजीत गाडगिल की भी इसी तरह मृत्यु हुई थी। 2001 में। तब से, 340 से अधिक भारतीय वायु सेना के विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। 150 से अधिक पायलट मारे गए हैं। संख्याएं भयावह हैं। उनके बारे में चुप्पी, और भी बदतर है। और फिर भी, हम आगे बढ़ते हैं। कोई जवाबदेही नहीं। कोई सुधार नहीं। कोई आक्रोश नहीं।”

उन्होंने कहा, “इसके बजाय हमें सलाह मिलती है। मंत्रियों और नौकरशाहों से जो इनोवेशन और ‘डीप टेक’ रिवॉल्यूशन की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। जो युवा उद्यमियों और सपने देखने वालों को पर्याप्त काम न करने के लिए दोषी ठहराते हैं। जबकि उनकी अपनी मशीनरी, पीएसयू, रक्षा अनुसंधान संगठन, राज्य तंत्र, साल-दर-साल हमारे सशस्त्र बलों को विफल करते रहते हैं।”

अपने पोस्ट में कविता गाडगिल आगे लिखती हैं, “हम ग्लोबल पावर बनने की बात करते हैं। हम विश्व मंच पर सम्मान की मांग करते हैं। लेकिन हम अपने ऑफिसर्स को पुराने विमानों, उधार के समय और उधार के पुर्जों पर उड़ने वाली मशीनों में भेजते हैं। और हम इसे वीरता कहते हैं। यह वीरता नहीं है। यह हिंसा है। हमारे अपने लोगों के खिलाफ राज्य द्वारा स्वीकृत हिंसा। सिद्धार्थ की सगाई हुई थी। दुर्घटना से दस दिन पहले। वह अपना जीवन संवार रहा था। और हमने उसे कॉकपिट के नाम पर एक ताबूत दिया। मुझे आपकी संवेदनाएं नहीं चाहिए… उनके ताबूतों को सलाम मत करो और अगले हफ़्ते की सुर्खियों में उन्हें भूल जाओ… वे इससे बेहतर के हकदार थे। हम उनसे बेहतर के लिए ऋणी हैं…”

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