हैदराबाद विश्वविद्यालय के एक दलित प्रोफेसर ने प्रोफेसर विपिन श्रीवास्तव को विश्वविद्यालय का प्रति कुलपति-1 नियुक्त किए जाने के विरोध में इस्तीफा दे दिया और आरोप लगाया कि परिसर में दलित समुदाय के लिए ‘शत्रुतापूर्ण’ माहौल है। कुलसचिव को गुरुवार (9 जून) को भेजे अपने इस्तीफे में सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोशल एक्सक्लूजन एंड इनक्लूजन पॉलिसी के अध्यक्ष प्रोफेसर श्रीपति रामुदु ने 17 जनवरी की दलित शोधार्थी रोहित वेमुला की मौत का हवाला दिया और कहा कि वह घटना से पहले और बाद से ही परिसर के घटनाक्रम पर ध्यान दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि परिसर का मौजूदा माहौल बेहद खराब है और दलित समुदाय को यह डराने वाला और शत्रुतापूर्ण लग रहा है। रामुदु ने कहा, ‘वे (दलित) प्रशासन की निष्पक्षता में बहुत असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और उनमें विश्वास की कमी है। एससी-एसटी शिक्षक फोरम के कई पत्रों में दलित संकाय ने जो भावनाएं व्यक्त की थीं उन्हें अच्छी तरह से जानते हुए मुझे उम्मीद थी कि प्रशासन विश्वास बहाली के उपाय करेगा। इसके बजाय, जब मैंने एक परिपत्र देखा जिसमें प्रोफेसर विपिन श्रीवास्तव का नाम प्रति कुलपति-1 के तौर पर था तो मैं स्तब्ध रह गया।’

घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया करते हुए श्रीवास्तव ने शुक्रवार (10 जून) को आरोप लगाया कि रामुदु प्रशासनिक कार्यों में सहयोग नहीं कर रहे थे और वह किसी काम में हिस्सा नहीं ले रहे थे। उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं जानता हूं कि वह विरोध कर रहे हैं, लेकिन वह जनवरी से खुश नहीं थे। वह किसी भी दस्तवेज पर दस्तखत नहीं रहे थे। वह किसी भी काम में हिस्सा नहीं ले रहे थे।

श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि एक छात्र एक सम्मेलन में हिस्सा लेना चाहता था लेकिन रामुदु न उसके कागज पर हस्ताक्षर कर रहे थे और न ही प्रशासनिक काम का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा, ‘डीन और मैंने (छात्र के) उस कागज को मंजूरी दी।’ उन्होंने कहा, ‘जहां तक रामुदु का संबंध है तो उन्होंने केंद्र के प्रमुख के तौर पर त्याग पत्र औपचारिक तौर पर नहीं दिया है, क्या उन्होंने ऐसा किया है या नहीं मैं नहीं जानता हूं क्योंकि शुक्रवार (10 जून) को मैं छुट्टी पर हूं और खबरों से मुझे इस बारे में जानकारी मिली है। मुझे विश्वविद्यालय के अधिकारियों से यह तस्दीक करने की जरूरत है कि क्या उन्होंने इस्तीफा दिया है।’

रामुदु ने आरोप लगाया है कि श्रीवास्तव ने पहले संगीन आरोपों का सामना किया है। श्रीवास्तव उस समिति के अध्यक्ष थे जिसने पांच दलित शोधार्थिओं को सजा देने की सिफारिश की थी जिसमें वेमुला भी शामिल था जिसने खुदकुशी कर ली थी।