हैदराबाद रेप और हत्या मामले के चारों आरोपियों को शुक्रवार (6 दिसंबर) को मुठभेड़ में तेलंगाना पुलिस ने मार गिराया। इस घटना की निंदा करते हुए रिटायर्ड जजों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है। जजों का कहना है कि तालिबानी न्याय की संविधान में कोई जगह नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज पीबी सांवत ने कहा कि सबकुछ नियम कायदे के तहत होना चाहिए, तालिबानी न्याय की जरूरत नहीं है। एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि पुलिस जो कह रही है उसे मानना आसान नहीं है। एनकाउंटर की जांच होनी चाहिए और पता लगना चाहिए कि यह एनकाउंटर सही था या फर्जी।
उन्होंने पुलिस के बयान पर भी शक जाहिर किया है जिसमें कहा गया कि आरोपियों ने पुलिस पर पत्थर और डंडे से हमला किया और आत्मरक्षा की कार्रवाई में पुलिस को गोली चलानी पड़ी। सांवत ने सवाल उठाते हुए पूछा कि आरोपियों के हाथ में हथकड़ी क्यों नहीं लगाई गई थी? पुलिस ने गोली चलाई तो कमर से नीचे गोली क्यों नहीं मारी?
उन्होंने कहा कि रेप और हत्या की घटनाओं के मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और अदालत में इन्हें अन्य मामलों से अलग रखना चाहिए। तीन महीने की डेडलाइन के साथ ऐसे मामलों की सुनवाई के साथ फैसला सुनाया जाना चाहिए।
बाम्बे हाईकोर्ट के रिटार्यड जज बीजी कोलसे-पाटिल ने कहा कि कुछ भी हो पुलिस को फैसला नहीं करना चाहिए। फैसले के लिए अदालत है और अदालत ही फैसला करती है। संविधान में विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका का इसलिए जिक्र किया गया है। यह तीनों एक दूसरे पर अंतर निर्भर हैं।
कोर्ट को मजबूत बनाने की जगह कोर्ट को मजबूर बनाया जा रहा है। जिसके चलते न्याय चाहने वाले लोग भी परेशान हैं और यही कारण है कि लोग कोर्ट के बाहर के न्याय पर भी जश्न मना रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर जज की आंखों के सामने आपराध होता है तो भी जज तुरंत फैसला नहीं सुना देगा। जज को फिर भी न्याय प्रक्रिया से गुजरना होगा। बता दें कि हैदराबाद रेप और मर्डर के चारों आरोपियों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया।