विवेक सक्सेना
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति जुबीन ईरानी की भीलवाड़ा में एक ज्योतिषी से हुई मुलाकात का चाहे कोई कितना भी मखौल उड़ाए , पर सच्चाई यह है कि अपने ग्रहों की प्रतिकूल दशा शुरू हो जाने के कारण वे आजकल उसका उपाय तलाशने में व्यस्त हैं। अनिष्ट को टालने के लिए ही आजकल वे ज्योतिषी, संत, तंत्र-मंत्र, हवन वगैरह का सहारा ले रहीं है। उन्हें बताया गया है कि शनि उनके लिए बहुत अनिष्टकारी साबित हो सकता है।
असल में खबरिया चैनलों में रविवार को भीलवाड़ा में ईरानी को एक ज्योतिषी को अपना हाथ दिखाए जाने के बाद राजनैतिक हलचलें बढ़ गई हैं। इसे लेकर कर तरह-तरह की बयानबाजी होने लगी है। मणिशंकर अय्यर यह कहते पाए गए कि भाग्य दिखाने की नहीं बल्कि बनाने की चीज होती है। कोई कुछ भी क्यों न कहे, पर सच्चाई कुछ और ही है। भाजपा के भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक, 2 नवंबर से उनकी शनि की साढ़े साती शुरू हो गई है। इसके कारण उन्हें अपने करिअर में बहुत नुकसान हो सकता है। कुछ मामले बदनामी का सबब भी बन सकते हैं।
सूत्रों के मुताबिक, 23 मार्च 1976 को दिल्ली में पैदा हुई स्मृति ईरानी की राशि धनु है। उन्हें ज्योतिष में काफी विश्वास रहा है। ग्रहों के ही कारण वे भारी-भरकम डिग्रियां व राजनीतिक अनुभव न होने के बावजूद मानव संसाधन मंत्री बनी थीं। अब जो ग्रह चल रहे हैं, उनके कारण उनकी पद प्रतिष्ठा के लिए खतरा पैदा हो गया है।
बहरहाल, उनके लोदी गार्डन स्थित घर पर कई दिनों से यज्ञ व पूजापाठ चल रहा है। उन्हें अपनी सी वन-2 कोठी बदलने की सलाह दी गई है। केंद्रीय मंत्री होने के कारण उन्हे टाइप आठ श्रेणी की कोठी दी गई थी। पर अब वे उसे बदलने लिए इतनी बेकरार हैं कि टाइप सात की कोठी में भी जाने के लिए तैयार हो गई हैं।
बताया जा रहा है कि उन्होंने एक स्तर नीची टाइप सात कोठी, तुगलक क्रीसेंट पर तलाश कर उसे पंडितों को दिखाकर स्वीकृति ले ली है। शनि को शांत करने के लिए मौजूदा टाइप आठ कोठी में पूजापाठ, तेल व लोहे का दान भी शुरू किया जा चुका है। उनके करीबियों के मुताबिक, शनि के कारण ही अचानक उनकी परेशानियां बढ़ गई हैं। अगर यह कहा जाए कि संघ ही उन पर शनि की तरह सवार हो गया है तो कुछ गलत नहीं होगा।
जाहिर है संघ का शिक्षा सुधार का एजंडा स्मृति ईरानी को ही लागू करवाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत सोच-समझकर ही उन्हें यह जिम्मेदारी वाला मंत्रालय सौंपा था। कुछ समय पहले ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पूछा था कि उच्च शिक्षा इतनी महंगी क्यों है? हमें इसका जवाब ढंÞूढ़ना होगा। हाल ही में विश्व हिंदू कांग्रेस में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों नें नितिन गडकरी की मौजूदगी में पूछा था कि उच्च शिक्षा के लिए तो बैंक कर्ज दे देते हैं, पर प्राथमिक शिक्षा के लिए कर्ज क्यों नहीं मिलता है। अगर नींव मजबूत करने के लिए ही पैसा नहीं होगा तो ऊपर की मंजिलों की मजबूती कैसे सुनिश्चत की जा सकेगी।
मालूम हो कि संघ प्रथमिक शिक्षा में भी आमूलचूल सुधार चाहता है। जर्मन भाषा विवाद सुलझा भी नहीं था कि संस्कृत को अनिवार्य बनाए जाने के मुद्दे पर नया विवाद खड़ा हो गया है। संघ चाहता है कि संस्कृत को अनिवार्य बनाया जाए जबकि स्मृति इस मामले में स्पष्ट रुख नहीं अपना पाई हैं। यह भी सच है कि भाजपा की कई ‘काबिल’ महिला नेत्रियां उनके भाग्य पर ग्रहण लगाना चाहती हैं। वे ईरानी को मिली अहमियत व सम्मान को पचा नहीं पाई हैं। वे यह पूछती हैं कि आखिर इनमें ऐसी कौन-सी प्रतिभा है जो हम लोगो में नहीं है। पार्टी के लिए हमारा समर्पण व सेवा उनसे कहीं ज्यादा रहा है।