तकनीक से जुड़ी दिग्गज कंपनियां ‘वेब 3’ का इस्तेमाल करना चाहती हैं। ‘वेब 3’ तकनीक के समर्थकों का मानना है कि यह तकनीक इंटरनेट की दुनिया में एक नई क्रांति का आगाज करेगी। इससे वेब के विकेंद्रीकरण की शुरुआत होगी। इसे फेसबुक या गूगल जैसी बड़ी कंपनियों के बजाय आम लोग चलाएंगे। इससे उपयोग करने वाले के डेटा पर उनका मालिकाना हक बढ़ जाएगा।

पिछले एक साल से इस तकनीक के बारे में चर्चा तेज हो गई है। तकनीक के क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों ने भी इस पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया है। वे भी इस तकनीक का इस्तेमाल करना चाहती हैं। इंस्टाग्राम और फेसबुक के मालिकाना हक वाली कंपनी मेटा ने पिछले महीने के अंत में ‘वेब 3’ साफ्टवेयर के लिए कई ट्रेडमार्क के आवेदन किए हैं। स्पाटिफाइ कंपनी ‘वेब 3’ के विशेषज्ञों की सेवा लेना चाहती है। माइक्रोसाफ्ट भी ‘वेब 3’ पर आधारित स्टार्टअप का समर्थन कर रहा है।

‘वेब 3’ इंटरनेट के विकेंद्रीकरण के बारे में है। इसका उद्देश्य इंटरनेट यूजर को अपने डेटा पर ज्यादा नियंत्रण देना है। तकनीक के विशेषज्ञों का मानना है कि वेब कभी काफी खुली जगह थी। इसे ऐसे लोगों लारा चलाया गया था, जिन्होंने अपनी वेबसाइट खुद बनाई थी। ये साइटें सिर्फ पढ़ने के लिए बनी थीं। इसलिए, साइट का डेटा उपयोग करने वालों तक पहुंचता था। इसे वेब 1 कहा गया था।

बाद में तकनीक से जुड़ी फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी कंपनियों ने वेब का एक नया संस्करण तैयार किया। उनके मंच पर मौजूद सामग्री को क्लिक करने, शेयर करने और इंटरैक्ट करने लायक बनाया गया। इन मंचों ने इंटरनेट को नए रूप में ढाला। इसे वेब 2 के रूप में जाना गया। अब वेब के साथ हमारा इंटरेक्शन, डेटा के तौर पर हमारे आनलाइन व्यवहार के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी देता है।

कंपनियां इस जानकारी का इस्तेमाल नए मंच बनाने और उपयोक्ताओं के व्यवहार के हिसाब से उन्हें विज्ञापन दिखाने के लिए करती हैं। साथ ही, ये कंपनियां उनके व्यवहार से जुड़ा डेटा तीसरे पक्ष को भी बेचती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे ऐसा वातावरण बनता है जहां उपयोक्ताओं को भी यह नहीं पता होता है कि उनका डेटा कहां जाता है। उस डेटा पर उपयोक्ताओं का बहुत कम या नहीं के बराबर नियंत्रण होता है।

‘वेब 3’ शब्द की खोज 2014 में की गई थी। इसे इथेरियम के सह-संस्थापक गेविन वुड ने खोजा था। हालांकि, पिछले साल ट्विटर और डिस्कार्ड कम्युनिटी के लोगों ने इस पर चर्चा करना शुरू किया, तब सामान्य लोग इस शब्द से परिचित हुए। इसके बाद से यह शब्द सुर्खियां बटोर रहा है।
इस चर्चा के बाद ‘वेब 3’ पर आधारित स्टार्टअप या प्लेटफार्म के लिए निवेश की बात शुरू हुई।

‘वेब 3’ परियोजना को लेकर काम करने वाली कंपनियों ने साफ्टबैंक विजन फंड 2 और माइक्रोसाफ्ट से फंडिंग लेने की प्रक्रिया को बंद कर दिया। ‘वेब 3’ इस्तेमाल में आसान नहीं है। ‘वेब 3’ की दुनिया में जानकारी को जमा करने के लिए डेटा सेंटर नहीं है। बल्कि इसे वर्चुअल डिजिटल वालेट में सेव किया जाता है। कोई भी व्यक्ति इन वालेट का इस्तेमाल ‘वेब 3’ ऐप में साइन- इन करने के लिए करता है।

यह ऐप ब्लाकचेन तकनीक पर चलते हैं। जब कोई उपयोक्ता किसी ऐप से बाहर निकलना चाहता है, तो वह सिर्फ लाग- आफ करता है, अपने वालेट को डिस्कनेक्ट करता है, और अपना डेटा खुद के पास सेव कर लेता है। ‘वेब 3’ के डेवलपर को ऐप डिजाइन करने के लिए काफी ज्यादा पैसे की जरूरत नहीं होती। इस वजह से स्वायत्तता बनाए रखने में मदद मिलती है। ये डेवलपर कम्युनिटी आधारित नेटवर्क के साथ काम करते हैं, जिसके लिए रुचि और कौशल की जरूरत होती है।

इसकी शुरुआत किसी डेवलपर के आइडिया से होती है। वह डेवलपर ट्विटर और डिस्कार्ड पर मौजूद कम्युनिटी के बीच से सहयोगियों की तलाश करता है। डेवलपर और उनके सहयोगी साथ मिलकर प्रोटोटाइप को डेवलप करते हैं। जब प्रोटोटाइप बन जाता है, तो इसे फिर से समीक्षा के लिए कम्युनिटी में वापस भेजा जाता है।