शाहिद परवेज

माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस की मौजूदगी में हत्या के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस और योगी आदित्यनाथ सरकार लगातार सवालों के घेरे में है। अतीक और अशरफ की हत्या का मामला उर्दू प्रेस में भी छाया रहा। उर्दू मीडिया ने इस मामले को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। साथ ही अतीक-अशरफ की हत्या में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए हैं और इसकी निष्पक्ष जांच का मुद्दा उठाया है।

लाइव टीवी कैमरों के सामने और पुलिस की उपस्थिति में अतीक और अशरफ की हत्या को हैदराबाद स्थित न्यूज पेपर सियासत ने भी कवर किया। “अतीक का नहीं, कानून का कत्ल” शीर्षक से एक एडिटोरियल पीस अखाबर में छापा गया। इसमें लिखा गया, “यूपी पुलिस द्वारा झांसी मुठभेड़ में अतीक के 19 वर्षीय बेटे असद और उसके सहयोगी गुलाम हुसैन की मौत के बाद आखिरकार जिस घटना की आशंका की जा रही थी वह घटित हुई।”

इसमें आगे कहा गया, “जिस तरह से यूपी को बंदूक की संस्कृति से चिह्नित राज्य में बदल दिया गया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण, निंदनीय और गैरकानूनी है।” लेख में आरोप लगाया गया कि यूपी की कानून व्यवस्था चरमरा रही है हर कोई चाहे वह अपराधी हो, पुलिस हो या प्रशासन, सत्ता की भाषा के आदी हो गए हैं।” इसमें यह भी कहा गया, “अदालतों की अनदेखी की जा रही है, न्याय से परे हत्याएं हो रही हैं, घरों को गिराने के लिए बुलडोजर चलाए जा रहे हैं, अपराधों को खत्म करने के नाम पर लक्षित हत्याएं की जा रही हैं।”

उर्दू प्रेस की कई खबरों में यह भी कहा गया कि जब असद और गुलाम की मुठभेड़ की जांच की मांग की जा रही थी, तो अतीक और अशरफ को लाइव टीवी पर तीन शूटरों ने मार डाला। और ऐसा तब हुआ जबकि उनके साथ एक दर्जन पुलिस कर्मी भी थे। अतीक और अशरफ की हत्या पर शक जाहिर करते हुए इन रिपोर्ट्स में कहा गया, “संदेह के बादल छाए हुए हैं। यह सामान्य अपराध नहीं हो सकता। अतीक की हत्या वास्तव में यूपी में कानून की हत्या है। इस घटना में कानून के रखवालों की भूमिका उनकी ड्यूटी पर सवाल खड़े करती है। यह जरूरी है कि पुलिस की भूमिका की निष्पक्ष जांच हो।”

संपादकीय में कहा गया कि अतीक और अशरफ दोनों अपनी जान के खतरे को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे थे और अतीक ने अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। इसमें कहा गया कि उनकी हत्या से कई सवाल उठे हैं, “उन्हें रात में पुलिस स्टेशन से मेडिकल चेकअप के लिए क्यों ले जाया गया, इसके बजाय वहां डॉक्टरों को क्यों नहीं बुलाया गया, उन्हें गाड़ी से उतारकर पैदल क्यों ले जाया जा रहा था…” संपादकीय में कहा गया कि हत्या की परिस्थितियां इस संदेह को और पुख्ता करती हैं कि यह एक योजनाबद्ध और संगठित ऑपरेशन था। हत्या यूपी में अराजकता के शासन का संकेत है। आर्टिकल में इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस पूरे मामले की जांच की मांग की गई है। इसमें कहा गया कि इस घटना को अंजाम देने या साजिश रचने वालों के चेहरे उजागर करने के लिए जांच होनी चाहिए।