How become Mahamandaleshwar: महाकुंभ एक ऐसा धार्मिक आयोजन है, जिसमें हिंदू धर्म में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति शामिल होना चाहता है। इस विशाल मेले में लाखों श्रद्धालु अपने पापों से मुक्ति के लिए संगम में स्नान करने आते हैं। इस आयोजन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है महामंडलेश्वर की उपाधि। इसे प्राप्त करने के लिए साधु-संतों को कठिन तप और संन्यास की जीवनशैली का पालन करना होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पद तक पहुंचने के लिए कौन-कौन सी योग्यताएं और नियम आवश्यक होते हैं?

महामंडलेश्वर बनने के लिए प्रमुख शर्तें

साधु-संन्यास परंपरा का पालन
महामंडलेश्वर बनने के लिए सबसे पहली और मुख्य शर्त यह है कि व्यक्ति को साधु-संन्यास की परंपरा का पालन करना होगा। उसका जीवन त्याग, तप और वैराग्य से परिपूर्ण होना चाहिए। इसके साथ ही, साधु जीवन में गहरी आस्था और शांति भी जरूरी है।

वेद और शास्त्रों का ज्ञान
वेद, गीता और अन्य शास्त्रों का गहन अध्ययन महामंडलेश्वर बनने की दूसरी अनिवार्य योग्यता है। इन ग्रंथों का ज्ञान संत को समाज को सही दिशा दिखाने और मार्गदर्शन देने में मदद करता है।

अखाड़ा समिति की संतुष्टि
महामंडलेश्वर के पद पर आसीन होने से पहले अखाड़ा समिति संत के निजी जीवन की जांच करती है। समिति यह सुनिश्चित करती है कि संत का जीवन निर्विवाद हो और वह समाज में आदर्श स्थापित करने योग्य हो।

अनुशासन और परंपरा का पालन
संत को अपने जीवन में अनुशासन और परंपरा का पालन करना चाहिए। लोभ, लालच और हिंसा से पूरी तरह दूर रहना आवश्यक है। सिर की चोटी भी हमेशा के लिए छोड़नी होती है।

अभिमान और अहंकार से मुक्त रहना
महामंडलेश्वर के लिए यह आवश्यक है कि वह अभिमान और अहंकार से मुक्त हो। उसे निस्वार्थ भाव से सभी जीवों का भला करने वाला होना चाहिए और यश की कामना से भी परे रहना चाहिए।

पट्टाभिषेक और जिम्मेदारियां

महामंडलेश्वर बनने के लिए सभी योग्यताएं पूरी होने पर संत का विधिवत पट्टाभिषेक किया जाता है। यह एक खास पूजा-अर्चना होती है, जिसके बाद संत को महामंडलेश्वर के पद से विभूषित किया जाता है। इसके बाद वह अखाड़े का आचार्य बन जाता है और उसकी सभी गतिविधियों का संचालन करता है।

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महाकुंभ जैसे आयोजनों में महामंडलेश्वर को विशेष सम्मान दिया जाता है। शाही जुलूस में वह सबसे प्रमुख व्यक्ति होता है और उसे छत्र, चंवर और सुरक्षा के साथ रथ पर ले जाया जाता है। इस दौरान वह अपनी पदवी और ज्ञान का समाज में प्रसार करता है।

महामंडलेश्वर बनने से पहले संत को अन्य उच्च पद भी मिल सकते हैं। इनमें श्रीमहंत, महंत, सचिव, मुखिया और जखीरा प्रबंधक जैसे पद शामिल होते हैं। इन पदों पर रहते हुए संत न केवल धार्मिक कार्यों का संचालन करते हैं, बल्कि समाज में धर्म का प्रचार-प्रसार भी करते हैं।

महामंडलेश्वर का पद केवल एक उपाधि नहीं, बल्कि एक महान जिम्मेदारी है। इसके लिए संत को अपनी पूरी जिंदगी तप, त्याग और ज्ञान में बितानी होती है। यह पद समाज को सही दिशा में चलने की प्रेरणा देता है। महाकुंभ से जुड़ी जानकारियों के लिए यहां करें क्लिक