कैला देवी मंदिर के मुख्य बरामदे में महंत ऋषिराज गिरि बैठे हैं। उनके अगल-बगल कुछ अनुयायी भी हैं। जिनमें से अधिकांश यादव समुदाय से हैं। यहां उनकी सुरक्षा में लगे यूपी पुलिस के सुरक्षाकर्मी भी मौजूद हैं। संभल शहर से तकरीबन 25 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद यह वही मंदिर है, जहां संभल शहर की जामा मस्जिद पर हिंदू अधिकार का दावा करने वाली अदालती याचिका पर विचार किया गया था। शाही जामा मस्जिद से जुड़ी याचिका के मामले में याचिकाकर्ता नंबर 1 हरि शंकर जैन के मुताबिक महंत ऋषिराज गिरि ने एक साल पहले उनसे संपर्क किया था और कहा था कि जहां आज मस्जिद है, वहां कभी हरिहर मंदिर हुआ करता था।
कैसे शुरू हुआ पूरा मामला?
हरि शंकर जैन कहते हैं, “महंत ने मुझे कुछ साहित्य और किताबें भी दी। मैंने अपना खुद का रिसर्च करना शुरू किया और जब मैंने पर्याप्त सबूत जमा कर लिए, तो यह याचिका दायर की।”
70 साल के हरी शंकर जैन काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद सहित कई ऐसी ही याचिकाओं के पीछे हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने ‘मस्जिद बनाने के लिए ध्वस्त किए गए सभी मंदिरों को वापस लेने’ की शपथ ली है।
हरि शंकर जैन के बेटे विष्णु शंकर जैन इन सभी मामलों में हिंदू पक्ष के वकील हैं, जिनमें संभल मस्जिद वाला मामला भी शामिल है। गिरि खुद इस मामले में याचिकाकर्ता नंबर 3 हैं।
महंत ऋषिराज गिरि ‘इंटरनेशनल हरि हर सेना’ नामक एक संगठन चलाते हैं, जिसके बारे में उनका दावा है कि यह पिछले पांच सालों से ‘हिंदू गरिमा को बहाल करने’ के लिए काम कर रहा है – वे इसकी तुलना बालासाहेब ठाकरे की (संयुक्त) शिवसेना और योगी आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी से करते हैं। स्थानीय अखबारों ने सनातन धर्म पर टिप्पणियों को लेकर संगठन के विरोध प्रदर्शनों की खबरें पहले भी दी हैं।
अचानक नहीं लिखी गई संभल मस्जिद मामले की याचिका
महंत ऋषिराज गिरि कहते हैं कि संभल मस्जिद को लेकर याचिका अचानक नहीं लिखी गई थी। वह कहते हैं, “इसके लिए बहुत सारी जमीनी तैयारी की गई है। हम गांव-गांव जाकर लोगों को हरि हर मंदिर के बारे में जागरूक कर रहे हैं। हिंदू समाज अपनी गरिमा के लिए लड़ने को तैयार है। जब हमें लगा कि सही समय है और माहौल सही है, तो हमने केस दायर कर दिया।” गिरी कहते हैं कि हिंदू जल्द ही संभल मस्जिद के अंदर नमाज़ अदा करेंगे। वे कहते हैं कि मामला बुलेट ट्रेन से भी तेज़ गति से आगे बढ़ेगा। वह कहते हैं,”उन्होंने अभी तक चायवाला देखा है, गायवाला नहीं।”
सर्वे कब करना है, यह कोर्ट ने नहीं बताया
इस पूरे मामले को देखा जाए तो सबकुछ जल्दबाज़ी में हुआ है। 19 नवंबर को दोपहर करीब 12 बजे चंदौसी कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसमें विष्णु शंकर जैन ने मस्जिद का तत्काल निरीक्षण करने की मांग की ताकि यथास्थिति को प्रभावित न किया जा सके। मामले में सरकारी वकील प्रिंस शर्मा ने कोई आपत्ति नहीं जताई और दोपहर 2.38 बजे याचिका स्वीकार कर ली गई।
अदालत में उनके रुख के बारे में पूछे जाने पर सरकारी वकील प्रिंस शर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “मैं रिकॉर्ड पर सरकारी वकील हूं। इसलिए जब मामला आया, तो मुझे सरकार का प्रतिनिधित्व करना पड़ा।”
संभल के निवासी शर्मा के पिता भी वकील हैं और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े हैं। याचिका स्वीकार किए जाने के बाद अदालत ने तुरंत एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव को मस्जिद का सर्वेक्षण करने और 29 नवंबर तक एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए नियुक्त किया। अदालत ने यह निर्दिष्ट नहीं किया कि सर्वेक्षण कब किया जाना चाहिए।
एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव ने तुरंत ही जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में अदालती आदेश ले जाकर उसी दिन इसके क्रियान्वयन की मांग की। शाम तक सर्वेक्षण पूरा हो गया था, अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने जामा मस्जिद कमेटी को औपचारिक रूप से सूचित कर दिया था।
मस्जिद कमेटी ने क्या कहा?
जमा मस्जिद कमेटी ने इससे इनकार किया है और कहा है कि सब कुछ जल्दबाजी में किया गया। यह ‘प्राकृतिक न्याय’ का खिलाफ था। जामा मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष ज़फ़र अली ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “अदालती कार्यवाही एकतरफ़ा थी। जबकि हमें पता था कि ऐसी याचिका दायर की जा रही है, हमारे पास इसके बारे में कुछ भी करने का समय नहीं था। पहले सर्वेक्षण के लिए नोटिस हमें सर्वेक्षण से कुछ मिनट पहले ही सौंप दिया गया था।”
एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव कहते हैं कि उन्हें मस्जिद कमेटी को सूचित करने की आवश्यकता नहीं थी, और सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया गया था। वह कहते हैं, “सिविल प्रक्रिया में जब तक कैविएट दायर नहीं किया जाता है, प्रवेश के समय विपरीत पक्ष को सूचित नहीं किया जाता है। न्यायालय ने सर्वेक्षण की तिथि निर्दिष्ट नहीं की थी। इसलिए यह हमारे विवेक पर था। चूंकि याचिका की खबर अब तक फैल चुकी थी। इसलिए हमने सोचा कि हमें एक सरप्राइज सर्वेक्षण करना चाहिए ताकि मस्जिद में कुछ भी बदला ना जा सके।”
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मस्जिद कमेटी के सदर जफर अली कहते हैं कि 24 नवंबर को किए गए दूसरे सर्वेक्षण के लिए भी उन्हें कोई समय नहीं मिला। अली कहते हैं, “हमें 23 नवंबर को शाम 6 बजे ही मौखिक रूप से सूचित किया गया और औपचारिक नोटिस रात 9 बजे दिया गया। दूसरे सर्वेक्षण के लिए कोई अदालती आदेश नहीं था।” राघव का तर्क है कि उन्हें इसके लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता नहीं थी।
जब 24 नवंबर को जब सर्वे टीम दूसरी बार निरीक्षण के लिए पहुंचा तो मस्जिद में खुदाई की अफवाह फैलने के कारण भीड़ जमा हो गई। इसके बाद स्थानीय निवासियों ने पथराव किया, जिसमें चार लोग गोली लगने से मारे गए। पुलिस ने इस बात से इनकार किया है कि उनकी तरफ से गोलीबारी की गई।
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