सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक हैरान कर देने वाली घटना हुई, जब मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई पर एक वकील ने जूता फेंकने की कोशिश की। बवाल के तुरंत बाद ही सुरक्षा कर्मियों ने वकील को हिरासत में लिया और कोर्ट से बाहर ले गए। लेकिन अब दिल्ली पुलिस ने वकील को छोड़ दिया है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ने उनके खिलाफ केस दर्ज करवाने से मना कर दिया।
अब इस मामले में तो राहत मिल गई है, लेकिन ऐसे दूसरे मामलों में कार्रवाई का प्रावधान है। सबसे पहले तो यह जान लीजिए, वकील ने जो हरकत की है, वह सीधे-सीधे कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। भारत का कानून स्पष्ट कहता है कि अगर कोई शख्स कोर्ट की मर्यादा को तार-तार करेगा, या ऐसा व्यवहार करेगा जो अपमानजनक है, तो ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। “कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट्स एक्ट, 1971” के तहत वकील के खिलाफ एक्शन लिया जा सकता है। वहीं, संविधान का आर्टिकल 129 सुप्रीम कोर्ट को अधिकार देता है कि वह अपमान से जुड़े मामलों में स्वतः कार्रवाई कर सके।
इस मामले में, क्योंकि वकील ने जूता फेंकने की कोशिश की है, यह एक “क्रिमिनल कंटेम्प्ट” की श्रेणी में आता है। यहां तो वकील को राहत मिल गई है, लेकिन ऐसे दूसरे मामलों में अदालत किसी भी आरोपी को 6 महीने तक की साधारण सजा दे सकती है। इसके बजाय उसे ₹2000 का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यदि मामला और अधिक गंभीर हो, तो उसे जेल सजा और जुर्माना दोनों भी हो सकते हैं।
वैसे, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के नियमों में भी कहा गया है कि अगर कोई शख्स अदालत में सरकारी अधिकारी या लोक सेवक के साथ जान-बूझकर अपमानजनक कार्य करेगा, या फिर उनके काम में किसी भी तरह की बाधा उत्पन्न करेगा, तो धारा 267 के तहत एक्शन लिया जा सकता है। इस धारा के तहत अधिकतम 6 महीने की जेल या ₹5000 का जुर्माना, या दोनों सजा आरोपी को दी जा सकती है।
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