कृष्णानंद त्रिपाठी

BSNL: भारत की सबसे बड़ी पब्लिक सेक्टर टेलिकॉम ऑपरेटर भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) इस वक्त बुरे दौर से गुजर रही है। ग्रामीण इलाकों में फोन कनेक्टिविटी को साकार करने वाली बीएसएनएल बीते कुछ सालों से नुकसान झेल रही है। कंपनी की ऐसी हालात हो चुकी है कि यह कभी भी बंद हो सकती है। मोदी सरकार या तो इस कंपनी को बेच सकती है या फिर इसे बंद कर सकती है। बीएसएनएल को 2015-16 और 2017-18 के दौरान कुल 17,645 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था जबकि 2018-19 में 14,000 करोड़ रुपए का। बीते चार साल के दौरान कंपनी को कुल 32,000 करोड़ रुपए का घाटा झेलना पड़ा है। कई दिनों से चर्चा चल रही है कि सरकार बीएसएनएल के साथ-साथ एमटीएनएल को भी बंद कर सकती है।

बीएसएनल के पूर्व फाइनेंस डायरेक्टर एसडी वर्मा ने फाइनेंशियल एक्सप्रेस ऑनलाइन को बताया ‘सरकार के लिए यह कहना बेहद आसान है कि वह कंपनी को बंद कर सकते हैं। लेकिन सच तो यह है कि इस कंपनी ने सरकार को भारी रिटर्न दिए हैं। जिस तरह का निवेश कंपनी में किया गया था, वैसा कई बार किया जा चुका है।’

उन्होंने आगे कहा ‘कंपनी का गठन 2000 में किया गया था। कंपनी पर सरकार ने जितना निवेश किया था उससे कई गुना ज्यादा फायदा कंपनी ने 2008 तक सरकार को दिया। यह दूरसंचरा की एकमात्र कंपनी है जो ग्रामीण स्तर पर सेवाएं प्रदान करती है। इस तरह की कंपनी को बंद करना उचित नहीं हो सकता।’

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वहीं टेलिकॉम एक्सपर्ट रवि विशवेषवर्या शारदा प्रसाद ने भी कंपनी को बंद करने के सुझाव को ठीक नहीं माना है। उन्होंने कहा ‘मेरे ख्याल में देश को सरकार टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर की जरूरत है। ये रणनीतिक तौर पर बेहद अहम है क्योंकि प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां व्यावसायिक कारणों से देश के कुछ क्षेत्रों को कवर नहीं करेंगी।’

बीएसएनएल 2000 से अबतक कई उतार चढ़ाव का दौर देखा है। कंपनी ने शुरू के 8 वर्ष फायदे में रहने के बाद वित्त वर्ष 2009-10 में पहली बार घाटे में आई थी। यह वह समय था जब प्राइवेट ऑपरेटर्स एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया आक्रमक स्तर पर प्रचार प्रसार और जनता को लुभावने सस्ते ऑफर्स दे रहे थे।

बीएसएनएल के दूरसंचार विशेषज्ञों और पूर्व अधिकारियों ने बीएसएनएल के खेदजनक स्थिति के लिए लालफीताशाही और सही समय पर सही फैसलना ने लेने को जिम्मेदार ठहराया, जो कभी केंद्र सरकार के ऑफ-बजट कैपिटल एक्सपेंडिचर कार्यक्रम की अगुवाई कर रहा था और भारत की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल की तुलना में अधिक लाभ मुहैया करवाता था।

एसडी सक्सेना ने बताया ‘एक बार बीएसएनएल का पूंजीगत व्यय भारतीय रेलवे से अधिक था और हमारा लाभ इंडियन ऑयल से अधिक था। यह एक पीएसयू है जिसने अपने शुरुआत के पहले 8-9 वर्षों तक अच्छा प्रदर्शन किया था।’

उन्होंने आगे बताया ‘बीएसएनएल फिक्स्ड-लाइन सेवाओं में बहुत मजबूत रहा है। यह अभी भी लैंडलाइन टेलीफोन बाजार में सबसे बड़ी बाजार हिस्सेदारी का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन मोबाइल क्षेत्र में यह निजी कंपनियों की चुनौतियों का सामना करने में विफल रहा है।’

एसडी सक्सेना ने कहा, ‘कंपनी मोबाइल क्षेत्र में भी बहुत अच्छा कर रही थी, लेकिन विशिष्ट टेंड्रिंग की जरूरतों के चलते यह मोबाइल क्षेत्र में पीछे रह गई। टेंडर्स को सही समय पर जारी नहीं किया गया जिस वजह से कंपनी के ऐसे हालात हुए। सरकार अब कंपनी को ही बंद करने के एक आसान तरीके की तरफ बढ़ रही है।’

वहीं हाल में सरकार बीएसएनएल, एमटीएनएल के लिए 70,000 करोड़ रुपये के बेलआउट पैकेज पर विचार कर रही थी लेकिन कुछ रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि वित्त मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। साथ ही बीएसएनएल और एमटीएनएल को बंद करने का सुझाव दिया है।