बड़े स्तर पर हवा को साफ करने के लिए डिजाइन की गई संरचनाएं हैं स्माग टावर। प्रदूषित हवा के इसमें प्रवेश करने के बाद, इसे वातावरण में फिर से छोड़ने से पहले कई परतों से साफ किया जाता है।
वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए स्माग टावरों को बड़े पैमाने पर वायु शोधक के रूप में उपयोग किया गया है। हवा को खींचने के लिए एअर फिल्टर की कई परतें इसमें लगाई जाती हैं। फिल्टर प्रदूषित हवा को सोखने के बाद फिर से वातावरण में उसे साफ करके छोड़ देते हैं। वे पीएम 2.5 कणों को बाहर निकालने के लिए हीपा फिल्टर तकनीक के सिद्धांत पर काम करते हैं। इस तरह के तरीकों को वैज्ञानिक रूप से अच्छी तरह से स्थापित किया गया है।
स्माग टावरों द्वारा 24 मीटर की ऊंचाई पर प्रदूषित हवा को खींचा जाता है और छानी गई हवा टावर के तल पर छोड़ दी जाती है, जो जमीनी से करीब 10 मीटर ऊंची होती है। तल पर पंखे संचालित होने के बाद, ऊपर से नकारात्मक दबाव के कारण हवा को खींचा जाता है।
मैक्रो परत तब 10 माइक्रोन या उससे बड़े कणों छानती है, जबकि माइक्रोलेयर लगभग 0.3 माइक्रोन के आकार वाले कणों को अलग करता है। दिल्ली में लगे स्माग टावर में स्थापित एक स्वचालित पर्यवेक्षी नियंत्रण और आंकड़ा अधिग्रहण (एससीएडीए) प्रणाली से वायु गुणवत्ता की निगरानी की जाती है। यह तापमान और आर्द्रता के अलावा पीएम 2.5 और पीएम10 के स्तर को भी मापता है।
दिल्ली में लगे स्माग टावर की बात करें तो यह 24 मीटर ऊंचा है। इसमें एक 18 मीटर कंक्रीट स्तंभ, छह मीटर ऊंची छत के ऊपर लगा है। इसके आधार पर 40 पंखे (हर तरफ से 10 पंखे) लगे हैं। यह 25 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड हवा को साफ कर वातावरण में छोड़ सकते हैं, जो पूरे स्माग टावर के लिए 1,000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड तक जोड़ सकता है।
स्माग टावर के अंदर दो परतों में 5,000 फिल्टर लगे हैं। यह एक किलोमीटर के क्षेत्र में हवा को साफ करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसमें लगे फिल्टर और पंखे अमेरिका से आयात किए गए हैं। डेनमार्क के कलाकार डैन रूजगार्ड ने 2017 में चीन के बीजिंग में स्माग टावर का पहला नमूना बनाया था।
