भारत ने चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद गगनयान मिशन की भी तैयारी तेज कर दी है। भारत जल्द ही अंतरिक्ष में वैज्ञानिकों को भेजने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए इसरो के वैज्ञानिकों की नासा में ट्रेनिंग चल रही है। इंटरनेशनल स्पेस सेंटर (ISS) में रहना काफी चुनौती भरा रहता है। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाती है और पृथ्वी अपने धुरी पर भी लगातार घूमती रहती है। इसी कारण पृथ्वी पर दिन और रात की प्रक्रिया होती है। लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि अंतरिक्ष में रहने वाले एस्ट्रोनॉट्स का दिन और रात कैसे होता है। अंतरिक्ष में तो हमेशा ही सूर्य की रोशनी रहती होगी। चलिए ऐसे सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
एस्ट्रोनॉट्स जब अंतरिक्ष में जाते हैं तो वे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन यानी आईएसएस पर रहते हैं। आईएसएस एक बड़ी अनुसंधान सुविधा है। आईएसएस का इस्तेमाल अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी एक्सपेरिमेंट्स करने के लिए किया जाता है। अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा, रूस की रॉस्कॉस्मॉस, यूरोप की ईएसए, जापान की जेएक्सए और कनाडा की स्पेस एजेंसी सीएसए के सहयोग से आईएसएस को लॉन्च किया गया था। आईएसएस यानी अंतरिक्ष स्टेशन 400 किमी की औसत ऊंचाई पर एक अंडाकार पथ पर धरती की परिक्रमा करता रहता है।
24 घंटे में कितनी बार सूर्योदय देखते हैं एस्ट्रोनॉट्स?
इंटरनेशनल स्पेस सेंटर पृथ्वी के चारों तरफ अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाता रहता है। आईएसएस में करीब 5 से 7 एस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष का अध्ययन करते रहते हैं। आईएसएस में रह रहे एस्ट्रोनॉट्स एक दिन में 16 बार सूर्योदय और 16 बार सूर्यास्त देखते हैं। बता दें कि आईएसएस 27,600 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा करता है। आईएसएस करीब 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है। आईएसएस करीब आधा समय सूर्य के प्रकाश में रहता है और बाकी समय पृथ्वी की छाया में बिताता है। इस प्रकार स्पेस सेंटर 45 मिनट दिन के उजाले में रहता है तो 45 मिनट अंधेरे में। आईएसएस 24 घंटे में 16 बार पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इस कारण एस्ट्रोनॉट्स दिन में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देख पाते हैं।
एस्ट्रोनॉट्स के लिए 16 बार सूर्योदय कैसे बना समस्या?
एस्ट्रोनॉट्स के लिए अंतरिक्ष में 16 बार सूर्योदय और 16 बार सूर्यास्त देखना शुरुआत में तो शानदार अनुभव होता है। लेकिन समय बीतने के साथ यह मजा सजा में बदलने लगता है। मानव शरीर 24 घंटे में एक बार सूर्योदय देखने के लिए अभ्यस्त होता है। ऐसे में एक दिन में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के कारण एस्ट्रोनॉट्स का बायोलॉजिकल क्लॉक बिगड़ जाता है। एस्ट्रोनॉट्स जेट लैग और थका हुआ महसूस करते हैं। एस्ट्रोनॉट्स को इससे बचने के लिए स्पेस सेंटर में पृथ्वी के समान ही दिन-रात का माहौल बनाया जाता है।
एस्ट्रोनॉट्स स्पेस सेंटर पर कैसे बनाते हैं दिन-रात का माहौल?
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर धरती की तरह ही दिन और रात जैसा माहौल बनाने के लिए स्पेस सेंटर को यूनिवर्सल को-ऑर्डिनेटेड टाइम यानी यूटीसी पर सेट किया जाता है। एस्ट्रोनॉट्स स्पेस सेंटर में मौजूद लाइट को ऑन और ऑफ़ कर दिन रात के माहौल को नियंत्रित किया जाता है। अंतरिक्ष मिशन के शुरूआती वर्षो में एस्ट्रोनॉट्स 8 घंटे की नींद लेने के बाद भी उनका स्वस्थ लगातार ख़राब हो रहा था। इसके बाद नासा ने स्पेस सेंटर पर भी पृथ्वी के सामान दिन-रात करने का फैसला किया था। अलग-अलग चमक के साथ अलग-अलग तरंग की एलईडी लाइट्स का इस्तेमाल कर स्टेशन पर दिन-रात का वातावरण बनाया जाता है।