Shibu Soren Death: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन हो गया है। आदिवासी जाति के सबसे बड़े नेताओं में उनका नाम शुमार रहा। अपनी जीवन यात्रा में उन्होंने कई चुनाव जीते, कई आंदोलन उन्होंने अपने दम पर चलाएं और कहना चाहिए अपनी इच्छा शक्ति के दम पर उन्होंने बिहार से झारखंड को अलग कर एक राज्य का दर्जा भी दिलवा दिया था।
2005 के चुनाव में क्या हुआ था?
अब वैसे तो शिबू सोरेन की जीवन यात्रा जैसी रही, एक नहीं कई ऐसे किस्से हैं जो आज भी याद किए जा सकते हैं। लेकिन उनका पहली बार झारखंड का मुख्यमंत्री बनना अपने आप में एक दिलचस्प किस्सा रहा था। यह बात 2005 की है, झारखंड में विधानसभा के चुनाव हुए थे। किसी भी पार्टी को अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं हुआ, लेकिन एनडीए सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। बीजेपी को उस चुनाव में 30 सीटों पर जीत मिली तो वहीं जेडीयू ने भी 6 सीटें अपने नाम की थीं, यानी कि एनडीए के खाते में 36 सीटें गई थी, बहुमत के आंकड़े से ये पांच सीटें कम थीं।
दूसरी तरफ शिबू सोरेन की पार्टी को उस चुनाव में मात्र 17 सीटों से संतोष करना पड़ा था, उनकी सहयोगी कांग्रेस को भी 9 सीटें ही मिल पाईं, यानी कि उस चुनाव में यूपीए का आंकड़ा 26 सीटों तक गया था जो बहुमत से काफी कम रहा।
अब जिस तरह के चुनावी नतीजे आए थे, कोई भी राज्यपाल सबसे पहले सरकार बनाने के लिए एनडीए को ही न्योता देता, कारण स्पष्ट था- सबसे बड़ी पार्टी उनकी थी, जो प्रक्रिया सबसे सामान्य रहती उसी को लेकर सबसे ज्यादा विवाद देखने को मिला।
राज्यपाल ने क्या खेल किया था?
2005 में झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी थे। उन्होंने एक बड़ा खेल करते हुए एनडीए को सरकार बनाने का न्योता नहीं दिया बल्कि उन्होंने सबसे पहले शिबू सोरेन को बुला लिया और उन्हें बहुमत साबित करने के लिए कहा गया।
झारखंड के पूर्व सीएम शिबू सोरेन का निधन
असल में एनडीए की तरफ से अर्जुन मुंडा राज्यपाल के पास गए थे, सरकार बनाने का दावा भी उन्होंने पेश किया था। दूसरी तरफ उस समय केंद्र सरकार में मंत्री रहे शिबू सोरेन ने भी राज्यपाल के सामने कहा था कि उनके पास 42 विधायकों का समर्थन है। राज्यपाल ने शिबू सोरेन को ही बहुमत साबित करने के लिए 21 मार्च तक का समय दे दिया। इस बीच 2 मार्च 2005 को उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। अब एक तरफ शपथ ली गई तो दूसरी तरफ बहुमत हासिल करने के लिए तमाम दांव पेच लगा दिए गए। शिबू सोरेन ने भावनात्मक अंदाज में भी अपने समर्थकों से वोट की अपील की थी, लेकिन उनके तमाम प्रयास विफल रहे और कम सीटों की वजह से शिबू सोरेन को मात्र 10 दिनों में ही इस्तीफा देना पड़ गया था।
कैसे छिन गई थी सीएम कुर्सी?
उस समय बीजेपी ने जमकर हंगामा किया था, राज्यपाल के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन हुआ। देश के राष्ट्रपति रहे एपीजे अब्दुल कलाम ने भी झारखंड के गवर्नर को तलब किया था। इस वजह से सबसे पहले बहुमत साबित करने की तारीख को 21 मार्च से घटाकर 11 मार्च किया गया इसके ऊपर तब तक यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी जा चुका था।ऐसे में शिबू सोरेन को अहसास हो गया था कि बहुमत नहीं होने की वजह से 10 दिनों के भीतर इस्तीफा देना पड़ेगा। उस इस्तीफे के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में अर्जुन मुंडा ने शपथ ली थी।
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