अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को हुए बाबरी विध्वंस कांड की यादें आज भी लोगों के जहन में ताजा हैं। कारसेवकों द्वारा राम मंदिर जन्मभूमि के स्थान पर बने विवादित ढांचे को सैकड़ों की संख्या में लोगों ने चढ़कर तोड़ दिया था। इसके बाद हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों में कम से कम दो हजार लोगों की मौत हुई थी। बताया जाता है कि कारसेवकों ने इस पूरी घटना की पहले से तैयारी तक कर ली थी। इतना ही नहीं कारसेवकों ने अयोध्या में मस्जिद गिराने का अभ्यास तक कर लिया था।
बाबरी विध्वंस कांड के प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो जिस दिन अयोध्या में मस्जिद गिराई जानी थी, उससे कई हफ्तों पहले ही कारसेवक बड़ी संख्या में बाबरी के आसपास जुट चुके थे। उनकी योजना थी कि वे विवादित जमीन पर मंदिर का निर्माण शुरू करेंगे। केंद्र सरकार की तरफ से सख्त आदेश था कि किसी को भी विवादित ढांचे की तरफ न जाने दिया जाए। हालांकि, कारसेवकों का वादा था कि वे मस्जिदों को नहीं छुएंगे और निर्माण शुरू करने के लिए सांकेतिक तौर पर नींव रखेंगे।
घटना को देखने वाले पत्रकारों के मुताबिक, 4 दिसंबर को भाजपा के एक सांसद ने मस्जिद गिराने के अभ्यास का आयोजन भी किया था। इसमें मीडियाकर्मियों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया था। हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस के फोटोग्राफर प्रवीण जैन संपर्क के जरिए इस अभ्यास को देखने के लिए गुपचुप तरीके से पहुंच गए थे। वहां लोगों ने उनकी जैकेट पर प्रवेश बैज लगाया और भगवा कपड़ा बांधकर कार्यकर्ता की तरह ही अभ्यास स्थल पर पहुंचाया। यहां सैकड़ों की संख्या में कारसेवक पहले से मौजूद थे।
चेहरा ढंक कर शामिल हुए थे नेता: बताया जाता है कि बाबरी विध्वंस के अभ्यास में कारसेवकों के साथ कई नेता भी चेहरा ढंक कर इसमें शामिल थे। वे यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि इमारत का कोई हिस्सा कैसे गिराया जाए। 2009 में गठित लिब्राहन आयोग ने भी कहा था कि आयोग के सामने विवादित ढांचे को गिराने के अभ्यास से जुड़ी कई तस्वीरें पेश की गईं। इसमें कुछ नेता रुमाल से चेहरा ढके भीड़ को निर्देश देते देखे जा सकते थे।