फिल्मी दुनिया से अध्यात्म की दुनिया में कदम रखीं बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने प्रयागराज महाकुंभ मेले में पहुंचकर सांसारिक मोह-माया का त्याग कर दिया। उन्होंने शुक्रवार को किन्नर अखाड़े में संन्यास ग्रहण कर लिया और संत बन गईं। किन्नर अखाड़े ने उन्हें महामंडलेश्वर की पदवी दे दी। आमतौर पर महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया अखाड़ों में कठिन मानी जाती है। व्यक्ति को पहले दीक्षा लेनी होती है और कठोर तपस्या के बाद यह पद मिलता है, लेकिन किन्नर अखाड़ा, जो सनातन धर्म के 13 प्रमुख अखाड़ों से अलग है, अपने अलग नियमों के लिए जाना जाता है। यहां संन्यास लेने और पदवी पाने की प्रक्रिया थोड़ी सरल है। इस घटना ने महाकुंभ में मौजूद श्रद्धालुओं के साथ पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का केंद्र महाकुंभ मेला इस बार एक अलग ही कारण से चर्चा में है।
ममता कैसे बनीं महामंडलेश्वर?
किन्नर अखाड़े की ओर से महामंडलेश्वर की पदवी देने की घोषणा होने के बाद ममता कुलकर्णी ने गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी संगम में स्नान कर अपना पिंडदान किया। इसके बाद उन्होंने भगवा वस्त्र धारण किए और वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच उनको दूध से स्नान कराया गया। इस दौरान उनकी आंखों में आंसू थे, मानो अपने पुराने जीवन को हमेशा के लिए विदा कर रही हों। अब ममता कुलकर्णी का नया नाम ‘श्री यमाई ममतानंद गिरि’ है। किन्नर अखाड़ा की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी ने ममता को यह पदवी दी। कहा जाता है कि किन्नर अखाड़ा उन लोगों को स्वीकार करता है, जो भौतिक जीवन और अध्यात्म के बीच संतुलन बनाकर चलना चाहते हैं।
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किन्नर अखाड़ा 2015 में स्थापित हुआ था और यह मुख्यधारा के 13 प्रमुख अखाड़ों से अलग पहचान रखता है। यह अखाड़ा अपनी खासियत के लिए जाना जाता है, क्योंकि यहां भौतिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन को एक साथ जीने की अनुमति है। इसका मुख्य आश्रम उज्जैन में है। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, गोरक्षा, कन्या भ्रूण हत्या का विरोध, और बाल विवाह रोकने जैसे सामाजिक कार्यों को बढ़ावा देना है। किन्नर अखाड़ा अपने नियमों और परंपराओं में लचीलापन रखता है, जिससे यह अखाड़ा उन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता है, जो पारंपरिक अखाड़ों की कठोर साधना और तपस्या का पालन नहीं कर सकते।
किन्नर अखाड़े के पहले महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को बनाया गया था। महाराष्ट्र के ठाणे में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मी लक्ष्मी ने मिठीबाई कॉलेज से आर्ट्स में स्नातक किया और भरतनाट्यम में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। एक समय पर उन्होंने मुंबई के एक बार में बतौर डांसर काम किया, लेकिन अपनी असली पहचान और समुदाय के अधिकारों के लिए उन्होंने संघर्ष का रास्ता चुना। ट्रांसजेंडर समुदाय के सम्मान और अधिकारों के लिए वे कई वर्षों से काम कर रही हैं। 2008 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के एशिया पैसिफिक सम्मेलन में प्रतिनिधित्व करके इतिहास रच दिया था और ऐसा करने वाली पहली ट्रांसजेंडर बनीं।
लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने “बिग बॉस” और “सच का सामना” जैसे लोकप्रिय टीवी रियलिटी शो में भी भाग लिया था और अपनी पहचान को और मजबूत किया। इसके अलावा, वे “अस्तित्व” नाम का एक एनजीओ चलाती हैं, जो ट्रांसजेंडरों के अधिकारों के लिए काम करता है। किन्नर अखाड़े ने अपना शस्त्र तलवार और शास्त्र शिव पुराण को चुना है, जो इसे एक अनूठी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान देता है।
ममता कुलकर्णी का जीवन हमेशा विवादों में रहा। फिल्मों से लेकर ड्रग्स मामले तक उनका नाम कई बार सुर्खियों में आया। वर्ष 2016 में उनके खिलाफ ड्रग तस्करी के मामले में अरेस्ट वॉरंट जारी हुआ। इससे पहले 1993 में उनका एक टॉपलेस फोटोशूट देशभर में विवाद का कारण बना। इतने विवादों के बाद अचानक उनका अध्यात्म की ओर मुड़ना कई सवाल खड़े करता है। लेकिन किन्नर अखाड़े के नियमों के अनुसार, व्यक्ति को पूरी तरह वैराग्य का जीवन अपनाने की आवश्यकता नहीं होती। यही कारण है कि ममता कुलकर्णी ने इस अखाड़े को चुना।
ममता कुलकर्णी का किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनना महाकुंभ मेले के इतिहास में एक नई मिसाल है। यह घटना यह संदेश देती है कि अध्यात्म की ओर लौटने का रास्ता हमेशा खुला रहता है, चाहे जीवन में कितनी भी मुश्किलें क्यों न हों।