मद्रास हाई कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एक हिंदू महिला और एक ईसाई पुरुष के बीच शादी तब तक कानूनन वैध नहीं है जब तक दोनों में से कोई एक धर्म परिवर्तन नहीं करता। महिला के परिजनों के दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए न्यायाधीश पीआर शिवकुमार और वीएस रवि ने कहा कि यदि यह जोड़ा हिंदू रिवाजों के मुताबिक शादी करना चाहता था तो पुरुष को हिंदू धर्म अपनाना चाहिए था और यदि महिला ईसाई रिवाजों के अनुसार शादी करना चाहती थी तो उसे ईसाई धर्म ग्रहण करना चाहिए था।
लेकिन यदि वे दोनों बिना धर्म परिवर्तन के अपना-अपना धर्म बनाए रखना चाहते थे तो विकल्प के रूप में उनकी शादी विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत पंजीकृत कराई जानी चाहिए थी।
याचिका दाखिल किए जाने के बाद अदालत में पेश की गई महिला ने अदालत को बताया कि उसने पलानी में एक मंदिर में शादी की थी। इस पर अदालत ने कहा कि यदि पुरुष ने धर्म परिवर्तन नहीं किया है तो हिंदू कानून के मुताबिक शादी कैसे वैध हो सकती है।
लेकिन महिला ने तुरंत पुरुष के साथ जाने का फैसला किया जिस पर अदालत ने भी कहा, ‘वह वयस्क है इसलिए वह जहां चाहे जा सकती है। कानून के मुताबिक, उसे देखभाल और संरक्षण की जरूरत नहीं है’।
अदालत ने कहा, दोनों में से किसी एक का धर्म परिवर्तन करना जरूरी