अश्विनी शर्मा
हिमाचल प्रदेश में बीते महीने राज्य सरकार ने ‘धर्म की स्वतंत्रता विधेयक’ ध्वनिमत से सदन में पारित किया। राज्य में कई इलाकों में ईसाई मिशनरियों पर धर्म परिवर्तन कराने के आरोप चलते सरकार नया विधेयक लेकर आई। हालांकि राज्य में कांग्रेस ने 2006 में ही ‘जबरन धर्मांतरण’ के खिलाफ विधेयक लागू किया था लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने इसमें संशोधन की बजाय नया विधेयक लागू किया है। खास बात यह है कि इस नए विधेयक में एक ऐसा प्रावधान भी शामिल किया है जिस पर हिमाचल हाई कोर्ट ने 2012 में रोक लगा दी थी।
ईसाई मिशनरियों ने इस पर कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी जताई और हाई कोर्ट में भी इसे चैलेंज किया था। बहरहाल 13 साल बाद बीजेपी सरकार ने इस बिल में तीन से सात साल की जेल की सजा का प्रावधान जोड़ा है। अगर दलित, महिला या नाबालिग का जबरन धर्मांतरण कराया जाता है तो दो से सात साल तक की जेल की सजा मिल सकती है। राज्य में कांग्रेस ने पहली बार 2006 में वीरभद्र के नेतृत्व वाली सरकार में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ विधेयक लागू किया था। हालांकि इसके 13 साल बाद नए विधेयक में 8 नए प्रावधान और जोड़ दिए गए हैं। इन नए 8 प्रावधानों में से एक शादी के से पहले धर्मांतरण और शादी के बाद धर्मांतरण से जुड़ा है।
विधेयक के सेक्शन 5 के मुताबिक किसी एक धर्म के व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ धर्म परिवर्तन के एकमात्र उद्देश्य के लिए किया गया विवाह (विवाह से पहले या बाद में) या दूसरे व्यक्ति को विवाह से पहले या बाद में धर्मांतरण करने पर परिवार न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित किया जा सकता है। ऐसे में शादी के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन मान्य नहीं होगा। वहीं सेक्शन 3 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण साधन का इस्तेमाल कर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर एक धर्म के व्यक्ति का दूसरे धर्म में परिवर्तन नहीं करेगा।
विधेयक पेश करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने भाषण में कहा था कि ‘हिमाचल में चंबा, सिरमौर, मंडी और कुल्लू जिले के दुर्गम क्षेत्रों में धर्म परिवर्तन की घटनाएं सामने आ रही हैं। कांग्रेस ने जो कानून 2006 में बनाया था उसका कोई असर होता नहीं दिखता। पिछले 13 साल में 2006 के कानून के लागू होने के बावजूद एक भी केस दर्ज नहीं किया गया। ऐसे में हम राज्य में इसे (जबरन धर्मांतरण) को और नहीं बढ़ने देंगे।’
ईसाई समुदाय इस नए कानून पर तीखी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईसाई नेता जॉन दयाल कहते हैं ‘यह पूरी तरह से लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। पहले कांग्रेस ने और अब बीजेपी ने वोट बैंक की राजनीति के लिए ऐसा किया। इससे पहले कांग्रेस के विधेयक में हाई कोर्ट ने धर्मांतरण से 30 दिन पहले डिप्टी कमिशनर (डीसी) को सूचित किए जाने वाले प्रावधान को निरस्त किया था। लेकिन अब कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाने पर हाई कोर्ट इसे फिर से निरस्त कर देगा। हम जल्द ही इसके खिलाफ कोर्ट में अपील करेंगे।
बता दें कि 31 अगस्त 2012 को हाई कोर्ट ने पुराने कानून से सेक्शन (रूल 3 और 5) को निरस्त कर दिया था। इसमें प्रावधान था कि धर्म परिवर्तन से एक महीने पहले व्यक्ति को इसकी सूचना डीसी को देनी होती थी जयराम सरकार का तर्क है कि इस प्रावधान में अगर कोई धर्मपरिवर्तन करवाते हुए पकड़ा जाता था तो उसे मामूली जुर्माने का प्रावधान था। अब नए कानून में यह अपराध संज्ञेय और गैर जमानती है।