हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक रिटायर्ड प्रोफेसर पर 50 हज़ार का जुर्माना लगाया है। अदालत ने उनके द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) को भी खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि पीआईएल सिर्फ पब्लिसिटी पाने के लिए दायर की गई थी और एक ‘शरारत’ थी। उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष द्वारा दायर इस पीआईएल पर एक्टिंग चीफ जस्टिस त्रिलोक चौहान और जस्टिस सत्येन वैद्य की डिवीजन बेंच सुनवाई कर रही थी। अदालत ने उन्हें आदेश दिया है कि वह शिमला के हीरा नगर स्थित किशोर देखभाल केंद्र में मौजूद लोगों को हर्जाने के तौर पर दें।
क्या है पूरा मामला?
अदालत ने इस मामले पर कहा कि ‘यह तय है कि जनहित याचिका (PIL) एक हथियार है, जिसका इस्तेमाल बहुत सावधानी और सतर्कता से किया जाना चाहिए।’ अदालत को भी यह अंदाज़ा होना चाहिए और सावधान रहना चाहिए कि PIL के खूबसूरत पर्दे के पीछे कोई बदसूरत निजी दुर्भावना, निहित स्वार्थ की तलाश तो नहीं छिपी है।
यह मामला पर्यवेक्षण गृह में मारपीट, यातना और दुर्व्यवहार के आरोप से जुड़ा था। अजय श्रीवास्तव ने इस मामले में अदालत के सामने याचिका पेश की थी। उनकी याचिका का आधार उनके पास आया कॉल था। यह कॉल जमानत पर रिहा हुए एक कैदी और उसके पिता ने किया था। हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता 13 मई, 2024 को मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखने से पहले इन दावों या आचरण की सटीकता को सत्यापित करने में विफल रहे थे।
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता को सोलन में किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) कार्यालय द्वारा सूचित किया गया था कि किशोर गृह के कैदी ने पहले ही इस संबंध में शिकायत दर्ज करा दी है। बेंच ने कहा कि इसके बावजूद, याचिकाकर्ता ने उचित प्रक्रिया को दरकिनार करने का विकल्प चुना और शिकायत दर्ज होने के एक सप्ताह से भी कम समय बाद मामले को समय से पहले अदालत के समक्ष रख दिया।
आदेश में आगे कहा गया है कि ‘याचिकाकर्ता एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर है, इसलिए उनसे यह अपेक्षा नहीं की गई थी। यह तय है कि अगर बिना उचित शोध के आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर याचिका दायर की जाती है, तो एक अच्छा मामला भी खत्म हो सकता है।’