कर्नाटक में हिजाब बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को याचिकाकर्ताओं से कहा कि अगर संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत पोशाक के अधिकार को पूर्ण मौलिक अधिकार के रूप में दावा किया जाता है, तो कपड़े न पहनने का अधिकार भी होगा।
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत से पूछा कि क्या अनुच्छेद 19 के एक पहलू के रूप में पोशाक के अधिकार को अतार्किक छोर तक बढ़ाया जा सकता है? दरअसल देवदत्त कामत ने सुप्रीम कोर्ट के 2014 के NALSA फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि पोशाक के अधिकार को अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है।
जस्टिस गुप्ता ने देवदत्त कामत से कहा, “हम इसे अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते। यदि आप कहते हैं कि पोशाक का अधिकार एक मौलिक अधिकार है तो कपड़े न पहनने का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार बन जाता है।” वहीं इसका जवाब देते हुए देवदत्त कामत ने कहा, “मैं यहां तर्कों को हल्का करने के लिए नहीं हूं। मैं एक बात साबित कर रहा हूं। मिलॉर्ड स्कूल में कोई कपड़े नहीं उतार रहा है।
लॉ वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि कोई भी पोशाक के अधिकार से इनकार नहीं कर रहा है।
देवदत्त कामत ने पूछा कि क्या इस अतिरिक्त पोशाक (हिजाब) को पहनना अनुच्छेद 19 के आधार पर प्रतिबंधित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हिजाब कोई सार्वजनिक व्यवस्था का मुद्दा नहीं बनाता है और न ही किसी नैतिकता के खिलाफ जाता है।
कामत ने कहा कि कोई भी इसे पहनने के लिए मजबूर नहीं कर रहा है, लेकिन अगर लड़की इसे पहनना चाहती है तो क्या राज्य इस पर रोक लगा सकता है।
जस्टिस गुप्ता ने कहा कि उसे हिजाब पहनने से कोई नहीं रोक रहा है लेकिन सिर्फ स्कूल में।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों के एक बैच में कर्नाटक राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था, जिसने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा था।