बाम्बे हाई कोर्ट ने पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी करने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर को रद्द करने से इंकार करते हुए कहा यह मामला न केवल द्वि विवाह की श्रेणी में आता है, बल्कि उसका आचरण भी बलात्कार की श्रेणी में आता है। द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस नितिन साम्ब्रे और राजेश पाटिल ने 24 अगस्त को उस व्यक्ति की याचिका खारीज कर दी, जिस पर पुणे पुलिस ने आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) और 494 (द्वि विवाह) के तहत मामला दर्ज किया था।
पीड़िता के मुताबिक, पति के निधन के बाद पहले से ही परिचित आरोपी ने मुझसे नजदीकी बढ़ाई थी। उसने विश्वास दिलाया कि उसकी अपनी पत्नी से नहीं बनती है इसलिए उससे अलग हो जाएगा।पेशे से दोनों शिक्षक हैं। इसके बाद उसने पहली शादी के रहते हुए मुझसे 18 जून 2014 को शादी कर ली। आरोपी दो साल तक मेरे साथ रहा फिर मुझे बेसहारा छोड़ दिया। अपनी अनदेखी से परेशान पीडि़ता ने 27 सितंबर 2019 को एफआईआर दर्ज कराई थी। पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया था। इसे ही रद्द करने की मांग को लेकर आरोपी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने दावा किया कि मेरे मुवक्किल ने पीड़िता से शादी कर उसकी रजामंदी से संबंध बनाए थे इसलिए दुष्कर्म का मामला नहीं बनता है। शिकायत कर्ता को पता था कि मुवक्किल ने पहली पत्नी से तलाक को लेकर दायर अर्जी 2010 में वापस ले ली थी। मेरे मुवक्किल ने पीडि़ता को सामाजिक, आर्थिक, और नैतिक रूप से सहारा दिया है। इन दलिलों पर कोर्ट ने कहा, हिंदू लॉ पहली शादी के अस्तित्व में रहते हुए दूसरे विवाह की अनुमति नहीं देता है। कोई यदि ऐसा करता है तो इसे दुष्कर्म का अपराध माना जाएगा। आरोपी ने माना है कि उसने पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी की। उसने पीड़िता को यह भरोसा दिलाकर शारीरिक संबंध बनाए कि उसने पहली पत्नी को तलाक दे दिया है।