नोएडा के सेक्टर 94 में एक श्मशानघाट के गेट पर लिखा था: ‘ग्रेटर नोएडा के शवों का यहां अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता है’। रात 8:30 बजे, करीब 21 चिताएं जलाईं गईं। सीएनजी शवदाह के ऑपरेटर दीपक कुमार सांस लेने के लिए बाहर एंबुलेंस की पार्किंग में आते हैं। वे बताते हैं कि दोनों मशीनों में शवों को जलाया जा रहा है लेकिन चार शवों का अभी अंतिम संस्कार किया जाना बाकी है।
उन्होंने बताया, “मैं कई दिनों से 16 घंटे से ज्यादा काम कर रहा हूं और सिर्फ 3-4 घंटे सो पा रहा हूं। ” मालूम हो कि कोविड -19 की दूसरी लहर ने श्मशान के कर्मचारियों के काम का बोझ बढ़ा दिया है। ये लोग जोखिम में काम कर रहे हैं। जहां वे कोविड मरीजों के शवों का अंतिम संस्कार करते हैं वहीं मरीजों के परिजनों की भीड़ उन्हें घेरे रहती है। कुमार ने पीपीई सूट नहीं पहना था। उन्होंने बताया, “हां, मुझे जोखिम पता है, लेकिन मैं जो काम करता हूं उसे पीपीई सूट में करना असंभव है। गर्मी सूट को सिकुड़ा देती है और हमारी खाल से चिपक जाती है। हम पीपीई पहने हुए न तो लकड़ी की चिताओं को और न ही सीएनजी मशीनों को संभाल सकते हैं।”
16 घंटे काम करने की जरूरत क्यों है?
कुमार के सहयोगी महेश पांडे ने बताया, “इस कोविड लहर से पहले, लगभग 3-4 शव सीएनजी दाह संस्कार के लिए आते थे। जिसमें लावारिस / अज्ञात लाशें भी शामिल रहती थीं, जिन्हें पुलिस भेजती है। अब, हर रोज 18-20 लाशें आ रही हैं। हममें से दो हैं जो CNG मशीनों को चलाते हैं।”
क्या अतिरिक्त घंटों के लिए काम करने पर अतिरिक्त वेतन मिलता है?
इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया,”अब तक कुछ नहीं। हम अपना सामान्य वेतन,12,000 रुपए प्रति माह पा रहे हैं। नोएडा लोक मंच, एनजीओ जो अंतिम निवास का प्रबंधन करता है, हमें सैनिटाइज़र, पीपीई सूट, मास्क इत्यादि देता है। हमें अभी अपने लिए बीमा (स्वास्थ्य बीमा) चाहिए।”
महेश पांडे ने बताया कि घर जाने का कोई सवाल नहीं है। उन्होंने बताया, “मैं जिन शवों का दाह संस्कार करता हूं, वे लिपटे हुए आते हैं, लेकिन मैं हर दिन सैकड़ों लोगों के संपर्क में आता हूं, उनमें से कई अस्पतालों से आते हैं, जिनमें एम्बुलेंस चालक भी शामिल हैं। मैं यह नहीं सोचना चाहता कि मैं कितना जोखिम में हूं।”
तुरंत किस चीज की जरूरत है?
कुमार ने बताया, “भले ही मुझे एक गिलास पानी चाहिए हो मुझे कैंटीन तक जाना होता है। लेकिन हम पूरे दिन लाशों से घिरे रहते हैं, मैं कितनी बार पानी पी सकता हूं? मुझे नहीं लगता कि किसी ने भी कभी सोचा था कि एक श्मशान पर इतना काम का बोझ पड़ेगा। मुझे हर ओर आग की लपटें ही दिखाई देती हैं। ”
क्या उन्हें मानसिक तनाव से निपटने के लिए मदद की ज़रूरत है?
जवाब देते हुए पांडे ने कहा, “नहीं, हमें पीने के पानी की ज़रूरत है।” एक पंडित ने बताया, “मुझे नहीं लगता कि कोई भी अभी मानसिक तनाव के बारे में सोच रहा है।” “हर कोई काम से परेशान है। सोचने का समय नहीं होता।” पंडित ने बताया, “परंपरागत रूप से हिंदू अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद नहीं करते हैं। लेकिन अब परिवारों के पास कोई विकल्प नहीं है। ”
पंडित ने बताया कि पहले वे एक दिन में 15 शवों का दाह संस्कार कराते थे, कुछ दिनों में 45 शव प्रतिदिन जलाए जा रहे हैं।
