घर के आंगन में बैठी 70 साल की सुनहरी देवी की आंखों से आंसू टपक रहे हैं। ज़िंदगी के इस पड़ाव में 35 साल की बहू और 6 साल के पोते को खोने का दर्द साझा करते हुए वह अपने पति को याद कर रही हैं। 

“उनके जाने के बाद पूरी ज़िंदगी इन्हें पालने और बड़ा करने में गुज़ार दी। कभी मजदूरी की, कभी भारी पत्थर उठाए, घर बनाने के लिए संघर्ष किया और अब ऐसे कुचल कर जान चली गई। हारी बीमारी से होती तो सब्र कर लेते लेकिन यह तो…”

वह अपने परिवार के साथ अलीगढ़ ज़िले के पिलखना गांव में रहती हैं। 2 जुलाई की सुबह अपनी बहू, पोते और बेटों के साथ हाथरस में सूरजपाल उर्फ भोले बाबा के सत्संग को सुनने गई थीं। जहां भगदड़ में पोता हाथ से छिटक गया, बहू कहीं पीछे छूट गई। जब एक बार फिर मिले तो दोनों की जान जा चुकी थी। 

जब हालात थोड़े सामान्य हुए तो परिवार ने जैसे-तैसे दोनों को ढूंढ निकाला। सुनहरी देवी बताती हैं–

“पंकज का चेहरा नीला पड़ गया था। उसके कमर पर जूतों के निशान थे। कीचड़ में सना हुआ हमने उसे उठाया। उसकी मां हमें दूसरे खेत में मिली।” 

भगदड़ के बाद मरने वाले लोगों की तादाद सरकार के मुताबिक 121 है। सुनहरी देवी की तरह ही 121 ऐसी कहानियां  धुंधली होती जा रही हैं।

चार बहनों का भाई था पंकज 

सुनहरी देवी बताती हैं कि पंकज से बड़ी उसकी चार बहने हैं। बहुत इच्छाओं से उसे पाला था। वह कहती हैं–

“अब आप आए हो, तो आप मेरा पोता ला सकते हो? यह दर्द कौन समझ सकता है? दुनिया दो चार दिन मज़े लेती है। मैं तो नहीं जानती थी कि वहां मेरी दुनिया ही लुट जाएगी।” 

सरकार से मदद की उम्मीद में परिवार 

नेता प्रतिपक्ष  राहुल गांधी ने हाथरस यात्रा में पिलखना के इस ही घर का दौरा किया था। उन्होंने कहा था कि योगी सरकार को मुआवजा ज़्यादा देना चाहिए क्योंकि इन परिवारों की स्थिति बहुत खराब है।  केंद्र और राज्य सरकार ने मृतकों को दो-दो लाख और घायलों को पचास-पचास हजार रुपए देने का ऐलान किया है।

सुनहरी देवी ने जनसत्ता.कॉम के साथ बातचीत करते हुए कहा–

“मुआवजा से मेरा पोता तो वापस नहीं आ सकता, अगर यह मदद करना चाहते हैं तो छोटेलाल (बेटा) को किसी तरह की नौकरी दे दें। ताकि उसकी चार बेटियों को पाला जा सके। उन्हें पढ़ाया लिखाया जा सके। इनका जीवन कट जाए।